हिंदी को मराठी संतो की देन | Hindi Ko Marathi Santo Ki Den

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Hindi Ko Marathi Santo Ki Den by विनयमोहन शर्मा- VinayMohan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घ॒ 1 हिन्दी को मराठी संतों की देन राम नाम की लुट है, लुट स्के तौ लूट घड़ी गई पस्तायगा प्राण ज्यायगा दूर ॥ >८ ১৫ > > | लेना गुरु का ज्ञान देना धन तन मान करना अमिरत पान होना अमर निदान >< > वेश्या सू यारीन करणा उस यारी स दोजख जाणा | वेश्या सालिम (जालिम) नंगावणाहारी (नंगा बनानेवाली) वो जीनने मानी अपनी प्यारी । दुनिया दारकू करे मिकारी सालिम बुरी वो सोबत माल सरे न वेढे सात माल सरे तो मू ना देखे माल सरे तो यारि ना राखे | তা ভু হাসু অহ थूके ॥ शिवराम के उपयुक्त कुछ दोहे प्राचीन हिंदी-संतों की अनुकृति प्रतीत होते हैं। यही कारण है कि उनका भाषा-प्रवाह उनकी अन्य रचनाओं की अपेक्षा अच्छा है । देवदास ये रामदासी शिष्य-मरुडल के अन्तर्गत हैं और अपने धमं के प्रति अत्यधिक के की तीखी भत्सना करते हैं। ये दादेगाँव लक সি निष्ठावान्‌ हँ । उसपर प्रहार करनेवालों के रामदासी मठ के अधिपति थे | इनके स्फुट मराठी पद और चौबीस श्लोकों का गजेन्द्र मोक्ष! कथाकाव्य प्राप्य है हिन्दी में भी इनकी स्फुट रचनाएँ मिली हैं। एक पद है जिसमें कृष्ण-गोपी-प्रेममाव की व्यंजना है--- | देख्यो रे माई ब्रहुरूपी का स्याल ॥ धृ °| नव नागर (अमीन) नवरस लीला गजेब बने नंदलाल । दस अवतार राम कृष्ण बन्यो है सब गोपी खुशाल | १, समात्‌ होने पर । २, साथ |




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