हिन्दी को मराठी संतो की देन | Hindi Ko Marathi Santon Ki Den

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Hindi Ko Marathi Santon Ki Den by विनयमोहन शर्मा- VinayMohan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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च हिन्दी को मराठी संतों की देन और छुठे वेदान्त, अंकुशपुराण, रामायण, सुन्दरकाएड आदि के निर्माता हैं। अतः इन्हीं छठे मुकुन्द के कृतित्व प्रर विचार करिया जाता है | इनके सम्बन्ध सें भारत-इतिहास-संशोधन- मण्डल (पूना) के शके १८२४ के बृत्त में थोड़ी चर्चा की गई है| इनका जन्मस्थान खण्डवा है। इसे इन्होंने अपने आत्मचरित में लिखा है--नीमाड़देशांत खांडोनवाशी असे जन्म मान्ञा तया पौर्देशीः--पिता का नास नारायण है। सात वष की आयु में ही इनका विवाह हो गया था। उसके वाद ही पिता का देहान्त हो गया। दारिद्रय से उल्मीड़ित हा ये खानदेश में जैतापुर' जाकर पितामह के पास रहने लगे। इन्होंने शक्के १६२३ में स्वप्न में गुरुमन्त्र ग्रहण किया। कुछ समय तक इन्होंने ओरंगजेब के ज्येष्ठ पुत्र मोअज्जिम के यहाँ नोकरी की तथा देश का विस्तृत श्रमण किया और तीथस्थलों की यात्राएँ कीं। इससे इन्हें त्रज निमाड़ी, आभारी, बागलाणी, खानदेशी, गुजरी, धारवाड़ी ग्रादि भाषाओं का अच्छा शान हो गया था। इनकी समाधि-तिथि अज्ञात है। इन्होंने मराठी में रामायण सुन्दरकाण्ड, रेशुका-सत्य-दर्शन, दानलीला, गुरु-स्त॒ृति, ग्ंगद-शिष्टाई, सुदामा-चरित्र, छुन्दोरत्नाकर आदि ग्रंथों की रचना को आर हिन्दी में फुटकल कवित्त, पद आदि लिखे। लेखक को इनका एक कवित्त मिला है जिसमें काव्य-छुटा है और भाषा की दृष्टि से मी अधिक स्वच्छुता है। उसे पढ़ने पर ज्ञात हो जाता है कि इनका ब्रजभाषा से अवश्य परिचय रहा है। इतना ही नहीं, हिन्दी-काव्य परम्परा से भी ये अवगत रहे है। कवित्त इस प्रकार है-- - व्याहे जलकमल रे कोकिल बसंत हित व्याहे मोर मेंघ रे चकोर इक चंद को। च्याहे चक्रवाक परकाश परमात मदै च्याहे मेह सरवर सिंपी स्वाति छुंद को | नादन कु स्वाद ब्याहे कुरंगी कुलह मोहे भुजंग च्याहे च्यंदन (औ) भंगी मकरंद को পাত चरनारविद विलोकि मुकुन्दानन्द वसुदेव सुत्तानंद नंदन क नंद को ॥ राम्‌ इनका शोध स्वर्गीय যাজনাউ ने लगाया था। ये शक-संवत्‌ १५६७ मे जीवित थे । पैठ्ण के किसी नारायणस्वामी के शिष्यथे। इनके पिता का नाम सिह ग्रौर पितामह का गोपीनाथ था | इनका मराठी में साढ़े तीन हजार ओवियों का ग्रंथ है जो काव्य की दृष्टि से उत्तम कह जाता है। लेखक को इनका हिन्दी में निम्नांकित पद उपलब्ध हुआ है-- ताल लिये वरुण॒ कुबेर करताल लिये কাল বিশ पवन' मृदंग श्रमरेस है। बीन लिये नारद पितामह सारंगी लिये मरुत सीतार मुइृचंग लिये सेस है |




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