मध्य कालीन संस्कृत नाटक | Madhya Kalin Sanskrit Natak

Madhya Kalin Sanskrit Natak by रामजी उपाध्याय - Ramji Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मध्यकालीन संस्क्त-नाटक कमलरजोभिमुक्तपापाणदेशा- सलसत यद्हल्यां गौतसो घर्मपत्नीम्‌ | त्वयि चरति कति कति भवितारस्तापसा दारवन्तः ॥। ३.१६ वहाँ से वे सभी गोदावरी तट पर पहुँचे और पंचवटी में कुटी में रहने ठगे । मारीच स्वर्णसण बनकर आया और राम लच्मण को साथ लेकर उसे पकड़ने के लिए चल पढ़े । सारीच भागा तो अभिज्ञानशाकुन्तल के सग की सौति-- ग्रीवाभज्ञामिरामं सुहुरदुपतति स्यन्दने पश्चार्थन प्रबिष्ट रपन नस दू भूयसा पूर्वकायम्‌ | दर्मैरघीवलीदें श्रमविव्तमुखश्रंशिमि ः कीणेबत्सी पश्योदग्रप्लुतत्वाद्ियति बहुतरं स्तोकमुब्यों प्रयाति ॥। ४.३ इधर राम ने मारीच को बाण से मारा उघर रावण तपस्वी बनकर सीताहरण के छिए पहुँचा। सीता उसे भिक्षा देने आइं और वह उन्हें विमान पर ले उड़ा । मलया- चल पर जटायु से उसकी छड़ाई हुई । जटायु सीता को सान्त्वना देते हुए युद्ध मैं मरणासनन हुआ । वह राम-राम कहते मर गया । सीता ने वहाँ अपने राहने हनुमान को दिये और कहा कि इसे राम को दे देना | करते हुए सीता को खोजने के छिए राम निकले । उनको मार्ग में जटायु मिछा । रास ने उससे कहा कि अब तो आप स्वर्ग जा ही रहे हैं । दशरथ से कह देंगे कि सीताहरण हुआ है । मैं शीघ्र ही रावण को मेजने बाला हूँ जो सीता की पुनः प्राप्ति का समाचार देगा । राम घूमते-फिरते किष्किन्धा जा पहुँचे । वहाँ हनुमान ने सीता का संवाद और साथ ही उनके गहने राम को दिये । राम ने उन्हें पहचाना और छचमण से कहा कि तुम भी इन्हें ठीक-ठीक पहचानो कि क्या ये सीता के हैं लच्मण ने आँखों सें आँसू भर कर कहा-- कुण्डले नैच जानासि मैच जानामि कण | नूपुरावेव जानासि नित्यं ॥ ४.३६ फिर हनुमान उन्हें के समीप ले गया जिससे विदित हुआ कि सुभ्रीव की परनों का हरण वाली ने किया है । राम ने श्रतिज्ञा की कि चाली को माँगा । उन्होंने विवि... बना 1. इस श्लोक की छाया तुढ्सीकृत रामायण और कवितावली में है। यह पद्य अचरदाः कालिदास के अभिज्ञानशाकुन्तलू से छिया गया है। रे. यह श्ठोक से छिया गया हे. नाहूँ जानासि केयूरे नाहं जानासि कुण्डले | गूपुरे व्वभिजानासि नित्य पादामिवन्दनात्‌ ॥ कि० का० ६.२२ ॥




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