मद्यकालीन प्रेम साधना | Madyakalin Prem Sadhna

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Madyakalin Prem Sadhna by परशुराम चतुर्वेदी - Parashuram Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९९ मध्यकालीन प्रेम-साधना वापस चलं पडे । तत्पश्चात्‌ उप्त रदस्य का पता लमते-लगति ज ये निरो- कुकुर शमाये च्रौर गाँव वालों से सूचना पाकर इमली के निकट पहुँचे तो इन्हें ज्योति के मूल मोत का वास्तविक परिचय मिला और इन्हें स्पष्ठ हो गया कि वद्‌ ज्योति वद्य पर वर्तमान भरण, के हो शरीर से स्फुरित हो रहो है। दस कार्ण इन्होंने कौतृहलवश एक पत्थर उठावर उसके सामने पटका दिया और उसका शब्द नुनते दी 'भरणः की গ্মাউ জুল गईं और दोनों के बीच आध्या- त्मिक चर्चा छिड़ गई। अंत में उस बातचोत का ऐसा प्रभाव पढ़ा कि ये भी यहीं पर ठहर गए. और अपने को 'मस्णः का शिष्य समभते हुए उसकी बातें मुनने लगे | 'मरण' पर भी इनका बहुत कुछ प्रभाव पड़ा और आनंद के मारे उसके सुख से पदों का कम धाराप्रवाह से चलने लगा। कहना न दोगा कि उस 'मरण? का ह्वी नाम आगे चलकर नम्म, शठकोप वा पराऊुश भी पड़ गया ओऔर ये दूसरे व्यक्ति उस थाचार्य के शिप्यरूप में, प्रसिद्ध मधुर कषि श्राइवार के नाम से, विख्यात हुए. | मधुर कवि अपने आचार्य के मुख से उक्त प्रकार निकलते जाने वाले पदों को ययाक्रम लिपिबद्ध करते गए ये और वे ही अब तक म्म आड़वार को रचनाओं के नाम से संगहोत हैं ।* परंतु इन दोनो आड़्वारो के पारस्परिक वार्सालाप तथा एक दूसरे से लाभ उठाने की बात छोड़कर अन्य कुछ भी पता नहों चलता। नम्म आंड्वार की रचनाओं मे अनेक तीर्थ स्थानों के नाम इधर-उधर बिखरे हुए पाये जाते हैं जिनका वरगोकिरण करने पर पता लगाया जा सकता है कि ये भी, बहुत से अन्य श्राहुवारो कौ नोति, उन पवित स्थानोंकी याना क्ि होंगे और यह धारणा इनके द्वारा कतिपय देवताओं के प्रति प्रदर्शित भक्ति भाव तथा इनकी विनयों को विशिष्ट शैली के आधार पर पुष्ट भी हो जाती हैं | फिर मी जनश्रुति इस बात को स्वीकार करती हुई नदीं जान पडती श्रौर यह कहना मी केवल कोरे अनु- मान पर ही आशित समझ पड़ता हैं कि ये अपने जीवन भर श्रविवादित ग्रवस्था मे रहे और अत में, इनकी मृत्यु केवल पैंतीस वर्ष की अवस्था में ही हो गई। ) “नम्तर भआाइवार! जी० ५० नदेसन, मद्रास पृष्ठ २९-३




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