समाजशाश्त्र परिचय भाग 1 | Samaj Shashtra-parichaya part-i
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
125.75 MB
कुल पष्ठ :
412
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मदन मोहन सक्सेना - Modhan Mohan Sakshena
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मनुष्य और समाज की प्रकृति श्र
धटफि0०0) का अभाव था परस्तु समाज के सदस्य होने पर ही उसके व्यक्तित्व
का उदय हुआ ।
(व) इसी प्रकार अमेरिका में १९३८ में अन्ना नाम की एक अवैध छुड़की
का पता लगा । बहू ६ महीने की आयु से ५ वर्ष तक बिल्कूल एकान्त में रही । अपने
एकान्त जीवन मे अन्ना को खाने के लिये केवल दूध प्राप्त था, उसे किसी प्रकार की
ट्रेनिंग न मिली और दूसरे लोगों से उसके कोई भी सम्बन्ध न थे । जब अन्ना का
पता लगा था उस समय न तो वह चल सकती थी, न बोल सकती थी । इसके बाद
धीरे-धीरे उसे मानव गुणों से अवगत कराया गया ।
(सा) सी प्रकार का उदाहरण हमें कॉस्पर हॉजर की घटना में मिलता है ।
बाल्यकाल से ही इस व्यक्ति को राजनीतिक कारणों से ऐसे एकान्त स्थान में बन्द
रखा गया जहाँ उसको किसी मानव से सम्पर्क करने का अवसर न मिला । उसके
चारा ओर कंबल खेत, ईट और पत्थर थे । मनुष्य की वाणी से भी वह पूरी तरह
अपरिचित था । सन् १९२८ में जब नूरम्बर्ग की सड़कों पर हॉजर पहली बार देखा
गया तो बहू ठीक से चल भी नहीं पाता था । उसका मस्तिष्क एकदम नवजात
शिशु के मस्तिष्क के समान था और वह अर्थह्दीन शब्दों को .बुदबुदाता था । वह
सजीव और निर्जीव वस्तुओं में भी भेद नहीं कर पाता था । पाँच॑ वर्ष . बाद जब
उसकों हत्या कर दी गई तो उसके शरीर का पोस्टमादम किया गया जिससे पता
चला कि उसके मस्तिष्क का विकास ही नहीं हुआ था । मानव सम्पक से वंचित
रहने के कारण ही उसका प्राकृतिक, शारीरिक और मानसिक विकास रुक गया ।
सामाजिक जीवन के महत्व पर प्रकाश डालते हुये हॉज़र के सम्बन्ध में मै काइवर ने
कहा : “हॉजर को समाज से दूर रखने का अथ॑ उसे मनुष्य स्वभाव से भी वंचित
कर देना था ।” *
स्व का विकास है के, - डुए ०9४६५ 0 561)
'स्व' की परिभाषा देते हुये, सर्फी ने कहा है कि “यह व्यक्ति का वहू रूप है
जिसमें वह स्वयं को जानता है । क्यूबर ने इस सम्बन्ध में कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति
अपनी कल्पना में एक ऐसी स्थिति ले छेता है जैसे वह स्वयं अपने व्यक्तित्व के बाहर
हो और इस ग्रहण की हुई स्थिति से वह अपने व्यक्तित्व को इस प्रकार देखता है
जैसे वह कोई दूसरा व्यक्ति हो । वास्तव में सामाजिक अन्तःक्रिया के बिना “स्व का
विकास सम्भव नहीं और जहाँ सामाजिक अस्तःक्रिया है वहाँ समाज है ।
_..... शिशष में सामाजिक जीवन के योग्य योग्यता का आविर्भाव स्व और व्यक्तित्व
के विकास का एक पहुल है । बच्चा केवल वयस्कों की सामाजिक रीतियों की नकल
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