आजादी का खतरा | Azadi Ka Khatra

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Azadi Ka Khatra by धीरेन्द्र मजूमदार - Dheerendra Majoomdar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-११ नियम यह हैं कि किसी चीज का नाश नहीं होता, उसका केव्‌ रूप- पंख़ितेन मात्र होता दै | यही कारण है के भारत के प्राचीन ऋषियों ने, जो प्रकृति की गोद में रमते रहते ये और विज्ञान के नियम से चलते ये, मृत्यु का अस्तित्व दी नहीं माना है। या तो मतुष्य का रूपान्तर शोक पुनर्जन्म होता है या वह पंचभूत में विलीन होकर स्थिर रहता है। तो इस विशाल शोपक वर का घ्वंच्त किस प्रकार हो सकता है ? तत्काल देखने में नाश होने जैसा जरूर छोगोगा, लेकिन प्रकृति के नियमानुसार रूपान्तंर होकर उसका पुनजेन्म होना अवस्यंभावी है | .और चूंकि उसका पुन्जन्म हिंसा की प्रतिक्रिया रूप में होगा, जिसलिये उसका जन्म होगा प्रतिहिंसक के रूप में | यही कारण दे कि रूस की जिस जनता ने पूंजीपति वग का ह्वसात्मक नाश करके शांति मिली ऐसा समझा, वही वर रूपान्तरित होकर अधिनायक् दल के रूप में प्रतिद्िसक वन कर जनता की छाती पर बैठ गया | जहाँ पूवैरूप में पूंजापति जनता की कुछ संपत्ति का शोषण कर उसे छोड देता था, वहां यष अधिनायक दल प्रतिहिंसा को चरिताव करने के लिये उनके सबत्व पर कब्जा कर उन्हें स्पायी रूप से निदेलन करने के छिये एक साधन बन गया। इससे आप समझ्न सकते हैं कि देश की वर्ग-विषमता को दूर करने के 'डिये अगर मुर्क . ने रूस के इशारे से दिसात्मक तरीके को अपनाया तो वह छिन्न-मिन्न तो होगा ही, पर उसका मतलब मी [सिद्ध नहीं होगा। गांधीजी का चमेपरिवतेन का तरीका गांधीजी का अद्दिसात्मक तरीका वर्ग-संघ्ष के स्थान पर्‌ वग-प्रि- वतन का है| वे शोषक वर्ग को घ्वंस न कर उससे उत्पादक बनने की अपील करते रहे हैं, और इस सामाजिक क्रान्ति का एक निश्चित कार्यक्रम देश के सामने पेश करते रहे हैं। सन ४४. के आखिर जेछ से छौटते ही गांवीजी ने जमाने की इस भीषण समस्या को देख लिया या कि अंगरे फौरन 'बगेविषमता को दूर करने के लिये ऋन्‍्तिकारी कदम न उठाया




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