गांधी विचार दोहन | Gandhi Vichar Dohan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खड १; घमं ५ -आणीको उद्यवेग व हो ऐसी आणी और कर्मको देखकर ही साधारण जीवनसें तो इस बातकी प्रत्यक्ष परल हो सकती है कि उस व्यक्तिमें अहिसा कहा तक पोषित हुई हैं । अहिसामय क्लेदा देनेके मौके जरूर आते है, पर उस समय उसमें विद्यमान अहिंसा स्पष्ट दिखाई देती है। जहा स्वार्थका लेशमात्र भी है वहा पूणं अहिंसा समभव नही है। ९. पर इत्तनेसे अहिसाक़ी साधना पूरी हुई नही समझी जा सकती। बहिसा- का साधक केवल प्राणियोको उद्वेग पहुचानेवाली वाणी न बोलकर भौर कमं नं करके अथवा मनमे भी उनके प्रति द्रेषभाव न आने देकर सतोष नहीं मानता; बल्कि वह जगतमें फैले हुए दु खोकों देखने-समझने और उनके उपाय ढूढ़ने का प्रयत्न करता रहेगा, ओर दूसरोके सुख के लिए स्वथ प्रसस्मतापूर्षवक कष्ट सहेगा। मतलब यह कि अहिसा केवल निवृत्ति-हूप कर्म या अकिया नही है, बल्कि अलबान प्रवृत्ति या प्रक्रिया है । १० अहिसामें तीब्र कार्यसाघक शक्ति भरी हुई है। इसमें जो अमोष शक्ति है उसकी अभी पूरी खोज नही हई है । अहिसाके समीप सारे वैर-द्वेष शांत हो जाते हे ', यह सूत्र शस्त्रो का प्रलाप नही है बल्कि, ऋषिका अनुभव वाक्य है । जाने-अनजाने, प्रकृतिकी प्रेरणासे, सब प्राणियोने एक दूसरेके लिए कष्ट उठानेका धर्म पहचाना है, और उसके आचरण द्वारा ससारको निभाया है। तथापि इस शक्तिका सम्पूर्ण विकास और सब कार्यों और प्रसमोमे इसके प्रयोगके भागं का अभी ज्ञानपूर्वक शोधन-सघठन नही हुआ है। हिसाके मार्गोंके श्षोषन और सथठन' करने का मनुष्यने जितना दीर्ध उद्योग किया है, और उसका बहुत अशॉमें शास्त्र बना डालने में सफलता पाई है, उतना यदि वह अहिसाकी शक्ति के शोधन और सघठनके लिए करे तो मनुष्यजातिके दु खोंके निवारणार्थ यह एक अनमोल, अचूक ओर परिणामे ठमयपक्षका कल्याण करनेवाला साम सिद होमा । ११ जिस श्रद्धा और उद्योगसे बेशानिक प्रकृतिकी शक्तियोंकी सोज करते हे और उसके नियमोको বিবিঘ মকর কেন তানি কা সবল লহ है, খা




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