श्री व्रत राज | Sri Vrat Raj

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Sri Vrat Raj by खेमराज श्री कृष्णदास - Khemraj Shri Krishnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मन्त्र परो सात्रया तन्वा प्रतिस्पुशों विन पुरुष एवेंदे सवंभू पूरामसि पूरा में ब्रह्मजज्ञान परम पुरस्तात ब्राह्मणोस्य मुख भद्रा झश्वा हरितः मिन्धि विधवा झ्पद्रिषः सरतों यस्य हि चाथे मयि वापों मघुवाता ऋतायते मद्दी यो मनसः काममाकू तिम्‌ माई प्रजा परासिचम्‌ मानरतोके तने सोषुण परापरा निक्ृतिः यत्पुरुषेण हृविषा यत्पुरुष व्यद्घु यज्ेन यज्ञमयजन्त यमाय सोम सुनुत यद्कन्द प्रथम जायमान जदापों अझष्न्या दे हैक दे कर ७ गदर यस्त्वा हुदा कीरिणा यहते त्वे सुझतो जातवेद? यतो विष्णुविचकमे यत्पाकत्रा मनया यद्ठो देवा थ झुचिः प्रयतो भूत्वा यत इन्द्र भयामह यत्रेदानी पश्यसि यन्ैरिषूसनममाना या फलिनी या अफला युवा सुवासा येभ्यो माता मधुमत्‌ यो वः शिवतमों रसः जिनसा वायो शर्ते दरीणाम्‌ विश्वानि वो दुर्गहा विष्णो नुक बिद्यामेषि रजस्पूरवहा कर्माणि पश्यत विचक्रमे प्जिवी विश्वमित्सवनमू हंस शुचिषद्‌ वसुरन्त रिक्षसद्‌ २७१ का १७६ श्० दि रु ३७ १८०२३ देन ७ २५८ डे छठ न २२९६ इति मन्त्रसूची समाप्ता । दिरण्याहपा उपसो हिरण्यग थे हिरण्यवर्शामु स्वत्त्ययनं ताक्ष्येमू सहस्रशीर्षा सप्तास्यासन्‌ सद्धि रत्नानि सबवितुष्टवा प्रसव सनोबोधिश्रूघि संवत्सरो सि सक्तुमिव तितजना सप्तत्वा दरितों वद्दन्ति स्नादुः पवस्व संबचसापयस्रा देबीम झुक्रमसि शक्नो देवी _ शमसि अभिभि करत झुचीवोपदुब्या झुकेषु में इरिमाणमू शियेजातः २४ दि




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