दिव्याचार्य | Divya Charya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पुण्य पंथ भागी नर में- मानवता मुस्काई; नयी सभ्यता, नव संस्कृति की- नयी शिखा लहराई; यह निर्य श्रमण-संस्कृति है- सभी तरह सुखकारी; शुद्ध सत्व का तत्त्व यहाँ है- निर्मल गुण अविकारी; साधु-पंथ है यही कि जिस पर- मानव बढ़ता आया; इसी राह पर पुण्य-जिनेश्वर ने है दीप जलाया; इसी दीप के नव प्रकाश में- हम सब जीवन जीते; परम पूज्य के वचनामृत को- मुग्ध हदय से पीते; जयति जिनेश्वर ! पूजनीय पद्‌- রি पर हम मस्तक धरते; कए मिरे जन-जन हो निर्भय- पूजन-अर्चन करते ! । { दव्याचार्य्‌/ 17




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