आचारांग के सूत्र | Aacharang Ke Sutra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
344
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० आचाराङ्ग के सूक्त
प्रध्ययन নিকাহ गद ्रौर कृद्धप््यमेंदहै। इसका नाम भावना
है । चौथी चूला मे मी एकं ही अध्ययन है । इस चूला मेँ १२ पद्म-
मय गाथाश्रो मेँ गंभीर उपदेग ह । इस चूला का नाम बिमुक्ति है।
पाँचवी चला का नाम निसीह ( निशीथ ) अथवा आयारपकणष-
झ्राचारप्रकल्प है। यह लुप्त मानी जाती है।
इस तरह द्वितीय श्रुतस्कंध में मुख्यतः मुनि-प्राचार का वर्णन
है। वह कंसा श्राहार ले, कहाँ से ले; उसकी शय्या-वसति
कंसी हो; वह् किस प्रकार विहार करे, केसी भाषा बोले; कंसे प्रौर
कितने वस्त्र रखे और कंसे उन्हें प्राप्त करे; उसके भ्रवग्रह क्या हो,
खड़े रहने के लिए वह कंसे स्थान का चुनाव करे; मल-मृत्र कहाँ कैसे
विसर्जन करे आदि मुनि-आचार विषयक नियमों का उसमें विस्तृत
विधान है।
जंसा करि पहले बताया है, पहले श्रुतस्कंध को श्रह्यचर्य' कहा
जाता है। ब्रह्मचर्य का श्र यहाँ 'संयम' है । संयम का भश्रर्थ है
৫- আও লিও 5
दव्वं सरीरभविओ अन््नाणी वत्थिसंजमो चेव ।
भावे उ वल्थिसंजम णायव्वों संजमो चेव॥
टि० ; भावत्रह्य तु साधूनां वस्तिसंयमः, अष्टादराभेदरूपो-
ऽण्ययं संम एव, स्ठदराविधसंयमाभिन्नरूपत्वादस्येति
अष्टादक्ष मेदाः ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...