आचारांग के सूत्र | Aacharang Ke Sutra

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Aacharang Ke Sutra by श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० आचाराङ्ग के सूक्त प्रध्ययन নিকাহ गद ्रौर कृद्धप््यमेंदहै। इसका नाम भावना है । चौथी चूला मे मी एकं ही अध्ययन है । इस चूला मेँ १२ पद्म- मय गाथाश्रो मेँ गंभीर उपदेग ह । इस चूला का नाम बिमुक्ति है। पाँचवी चला का नाम निसीह ( निशीथ ) अथवा आयारपकणष- झ्राचारप्रकल्प है। यह लुप्त मानी जाती है। इस तरह द्वितीय श्रुतस्कंध में मुख्यतः मुनि-प्राचार का वर्णन है। वह कंसा श्राहार ले, कहाँ से ले; उसकी शय्या-वसति कंसी हो; वह्‌ किस प्रकार विहार करे, केसी भाषा बोले; कंसे प्रौर कितने वस्त्र रखे और कंसे उन्हें प्राप्त करे; उसके भ्रवग्रह क्या हो, खड़े रहने के लिए वह कंसे स्थान का चुनाव करे; मल-मृत्र कहाँ कैसे विसर्जन करे आदि मुनि-आचार विषयक नियमों का उसमें विस्तृत विधान है। जंसा करि पहले बताया है, पहले श्रुतस्कंध को श्रह्यचर्य' कहा जाता है। ब्रह्मचर्य का श्र यहाँ 'संयम' है । संयम का भश्रर्थ है ৫- আও লিও 5 दव्वं सरीरभविओ अन्‍्नाणी वत्थिसंजमो चेव । भावे उ वल्थिसंजम णायव्वों संजमो चेव॥ टि० ; भावत्रह्य तु साधूनां वस्तिसंयमः, अष्टादराभेदरूपो- ऽण्ययं संम एव, स्ठदराविधसंयमाभिन्नरूपत्वादस्येति अष्टादक्ष मेदाः ।




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