सीढ़ियां | Sidiya
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
346
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)से आपकी छुट्टी कितने बजे होगी ?” सुकेत मेज की पुस्तकों को व्यवस्थितः
करते हुए पूछता । “
तुम समभते हो, अस्पताल से छुट्टी तुम्हारे स्कूल की तरह बचे टाइम पर.
होती है ? वंधा टाइम होने पर भी वहां से खाली होने का कोई ठिकाना नहीं .
है, कभी कोई वहुत वेढव केस हो गया, तो फिर देर लग सकती है न !
'पर वैसे तो तुम एक डेढ़ वजे तक अपना काम खत्म कर ही लेती हो ।.
बताया न, अस्पताल के समय का कोई ठिकाना नहीं है ।' ।
“मं कु नहीं जानता, दो ढाई वजे तक तुम वखृवी आ सक्तीहो र्मे
खाना तभी खाऊँगा, जब तुम आ. जाओगी ।' |
'मैं कह रही हूं, आज लौटना मुश्किल है।'
पर क्यों, आखिर कोई बात भी हो।
वात क्या है, रोज-रोज आकर थक नहीं जाती हूं ?'
“वस इतनी-सी वात । तुम इतनी वड़ी डाक्टर हो, कार नहीं खरीद
सकतीं, टैक्सी में नहीं भा सकतीं ?” सुकेत मुंह फुला कर कहता, हाथः
कितावें संगवाने मे वरावर व्यस्त रहते। सुकेत के चेहरे पर गंभीरता
प्रीटता जौर नाटकीयता की मिली-जुली सले उसको गुदगुदा देतीं ओौर फिर
उसके लिये अस्पताल से लौट कर वापिस आने का काम एके दिनके लियः
और बढ़ जाता ।
सुपर्णा दी की गिरती हुई .हालत के कारण उन दिनों उसे छूट्टी লী,
पड़ी थी, एक विचित्र प्रकार की लाचारी--सुपर्णा दी आंखें नहीं खोल रही
- हैं और वह उसके पास कुर्सी डाले घण्टों बैठी है। सुकेत कमरे में
भांकता और वह इशारे से ही कह देती, भमै अमी जायी ) तुम इधर मत
आओ, मां को डिस्टवं होगा ।' सुकेत उसकी प्रतीक्षा में कभी दरवाजे पर
ही खड़ा रहता, कभी अपने कमरे मेँ जाकृर बैठ जाता, देर में पहुंचने पर
मंह फुला लेता । ।
तुम मां की इतनी चिन्ता करती हो; मेरी चिन्ता थोड़ी है तुम्हें ! ':
मां से भी ईर्ष्यालु हो उठा था वह उन दिनों । सचमुच सुपर्णा दी की चिन्ता
सीदि्यां
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