इतिहास के महापुरुष | Itihas Ke Mahapurush

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गुप्त सम्राट २७ रामचन्द्र की कथा के साय अमर्‌ वना दिया है, ज्यादा उपयुक्त साधन प्रस्तुत कर सकती हूँ । यह स्वाभाविक था कि गुप्त-सम्राटों ने आर्व-सम्यता ओर हिल्दू- धर्म का पुनरुत्यान किया, उसका बौद्धधर्म के बारे में कोई अच्छा रुख नही था | इसकी कुछ वजह तो यह थी कि यह आदोलन ऊचे वर्ग का था और उसे सहायता देनेवाले क्षत्रिय सरदार थे, और बौद्धवर्म में लोकतन्त्र की भावना अधिक थी । कुछ वजह यह थी कि बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय का कुशानों और उत्तर भारत के दूसरे विदेशी शासको से घनिष्ठ सबध था । लेकिन फिर भी वौद्धधर्म पर कोई जुल्म किया गया हो, ऐसा नही माहूम होता । वौद्ध विहार कायम थे ओर तच भी बडी-बडी शिक्षा-सस्थाए बनी हुई थी । गुप्त-सम्राटो काक्का के राजाओ के साथ मित्रता का सबध था और लका में वौद्धधर्म खूब फैला हुआ था । छका के राजा मेधवर्ण ने समुद्र- गुप्त के पास कीमती उपहार भेजे थे और उसने सिंहली विद्यार्थियों के लिए गया मं एक विहार भौ वनवाया था । लेकिन भारत में बौद्दवर्म धीरे-धीरे मिटने लगा । यह हालत इसलिए नही पैदा हुई कि ब्राह्मणों ने या उस जमाने की सरकार ने उसके ऊपर कोई बाहरी दवाव डाला, वल्कि इसलिए कि हिन्दूधर्म में उसे धीरे-बीरे हज्म कर लेने की ताकत थी । इसी जमाने में चीन का एक मशहूर यात्री फाह्यान भारत में आया। बौद्ध होने के कारण यह बीद्धधर्म के पवित्र ग्रन्थों की तलाग में यहा आया था। उसने लिखा हैँ कि मगध के लोग खुशहाल और सुखी थे, न्याय का पालन उदारता से किया जाता था गौर मौत की सजा नही थी । गया वीरान ओौर उजडा हुआ था, कपिलवस्तु जगल हौ चुका था, लेकिन पाटलिपुत्र के लोग “घनवान, खुशहाल गौर सदाचारी थे ! सम्पन्न मौर विद्याल वौद्ध विहार वहुत थे | मुख्य सडको पर धर्मशालाए थी, जहा मुसाफिर ठहर सकते थे और जहा सरकारी खर्च से खाना दिया जाता था । बडें-वडे नगरो में खैराती दवाखाने थे । भारत में म्रमण करने के बाद फाह्यान रुका गया और वहा उससे दो वर्ष बिताये । लेकिन उसके एक साथी ताओ-चिंग को भारत इतना पसन्द




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