जैन धर्म | Jain Dharam

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : जैन धर्म  - Jain Dharam

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सर्वपल्ली राधाकृष्णन - Sarvpalli Radhakrishnan

Add Infomation AboutSarvpalli Radhakrishnan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
৩জ%৯৩০০০৪০০৪০০০০০০০ ००००७७००००७७४०७००७०७८०७७७०७०६७०७७७-७४७०००००७०८०७४७०७८७ न हु जिणे अज्ज दिस्सई, वहुमए दिल्‍्सई सग्गदेसिए । संपह्द नेयाउए पहे, समय सोयम मा परसायए 0 तुद्धे परितिन्तुडे चरे, मामगए सगरेव संजए। संतिलम्यं च बृहए, समयं गोयम ! লা पसायए ॥ --उत्त राध्ययन, अ० १०-गा० ३१-३६। हं गौतम ! मेरे निर्वाण के वाद लोग कहेगे--निश्चय ही अब कोई जिन नही देखा जाता ।” पर “हं गौतम ! मेरा उपदिष्ट और विविध दृष्टियों से प्रतिपादित मार्ग ही तुम्हारे लिए पथप्रदर्शक रहेगा ।” ग्राम या नगर जहाँ भी जाओ, वहाँ संयत रहकर शान्ति मार्गं का प्रसार करना, अहिसा सार्ग का प्रचार करना क्योकि :- “शान्ति” सार्ग पर चलने से ही धर्म के स्वरूप का साक्षात्कार होता है 1” 96686 ल0९06७७४२०७४७७०७९००७४०००० ३७०७७०४६४७ ७४ ०८७००० .1.1.21.17.1111/1.1511 1 / 0-1.1.1461/ 1 @०० ७०००५००१ ००००००७० ७७6८ ००००००८७७७७७०००७५८००७०८७१ १०००९ ०००, ७००१ दनि |. 8868000060&७2949४08 06099 00289 4८०4 नी 001 1.111.111. 1.1.1.1.11-11 11}, जेन धमे का स्वरूप




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now