जैन धर्म | Jain Dharam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
272
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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न हु जिणे अज्ज दिस्सई, वहुमए दिल््सई सग्गदेसिए ।
संपह्द नेयाउए पहे, समय सोयम मा परसायए 0
तुद्धे परितिन्तुडे चरे, मामगए सगरेव संजए।
संतिलम्यं च बृहए, समयं गोयम ! লা पसायए ॥
--उत्त राध्ययन, अ० १०-गा० ३१-३६।
हं गौतम ! मेरे निर्वाण के वाद लोग कहेगे--निश्चय
ही अब कोई जिन नही देखा जाता ।”
पर “हं गौतम ! मेरा उपदिष्ट और विविध दृष्टियों से
प्रतिपादित मार्ग ही तुम्हारे लिए पथप्रदर्शक रहेगा ।”
ग्राम या नगर जहाँ भी जाओ, वहाँ संयत रहकर शान्ति
मार्गं का प्रसार करना, अहिसा सार्ग का प्रचार करना
क्योकि :-
“शान्ति” सार्ग पर चलने से ही धर्म के स्वरूप का
साक्षात्कार होता है 1”
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जेन धमे का स्वरूप
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