मछली जाल | Machhali Jaal

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Machhali Jaal by कृष्णचन्द्र - Krishnachandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हुस्त और हेवान ६ हुए विरले लगे हण थे, एक नोजवान किसान को अपने बीच पकढे ला रहे थे। कुछ देर के बाद उसने देखा कि उस नोजवान के हाथ उसकी कमर पर हथकडियो में बँधे हुए हैं उनके पीछे-पीछे एक और आदमी चला आ रहा था ओर उसके साथ एक लडकी थी और वह्द उस लडकी से मुस्करा-मुस्कराकर बातें कर रद्दा था। ज्लडकी की आँखे कुकी हुई थीं श्नौर चाल उखढी-उखटी-सी । जब चे चृक्तों के कु'ड के निकट पहुँचे तो सारे किसान राही उनके आदरस्वरूप उठकर खडे दो गये। यनिया भी अ्पन्ती दुकान से बाहर निकल आया और द्वाथ जोडकर डनके सामने जा खड हुआ । फिर उनके लिए दुकान से दो चारपाइयाँ निकाल ल्ञाया और उन पर उजली चादरें विछाकर उन्हे बेठने के लिए कद्दने लगा।। उनकी नजरों का अभिमान और बात करने का ढंग कहे देता कि वे किसी ऐसी अलुभूतिपु्ण शक्ति के मालिक थे जो अन्य लोगों को प्राप्त नही थी | एक आादसी ने जो उन सबका खरदार मालूम होता था, लडकी को परे एक बृुक्ष के नोचे बेठने को कद्दा ओर फिर उसने उन दो श्रादमियो से सम्बोधित किया जो उख नौजवान किसान को पकडे हुए थे । “अब दुल्ले ! शाहबाज़ | इस हरामी की हथकडी ज़रा ढीली कर दो और इसे पनी बेर पिक्ताश्रो 1 बनिया बोला--“हजूर, जल लाऊ | उडा मीठा शबंत, कोहाले से नई मिसरी सेंगवाई दे ।” दुलला और शाहवाज्ञ किसान को उसी प्रकार हथकडियों से जकडे चश्मे के पास से जा रहे थे जहां पहले ही एक खच्ररवाला श्रपनी खच्च को पानी पिला रहा था। हजूर ने उत्तर दिया--“ हाँ, हाँ शाहजी, शबंत पिलाइये, यहत प्यास लगी है ओर खाना भरी यहीं खायगे। कोई ভুলা चगेरा है २? “जी हजूर, सब इन्तज्ञाम हुआ जाता है ।” बनिये ने हाथ जोड़े हुए, बतीसी निकालते हुए, सिर द्विलाते हुए कहा।




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