पाथेय | Paatheya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
366
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पाथयेय | ॥ ११
होती जाती है। सब प्रकार के अभिमान गल जाने पर तत्व-
जिज्ञासा की पूर्ति हो जाती है और स्वाभाविक प्रीति जाग्रृत हो
जाती है। प्रीति की भी पूति नहीं होती। वह् तो उत्तरोत्तर
बढ़ती रहती है । इच्छाओं की निवृत्ति होती है, जिज्ञासाकी
पूति होती है और प्रीति की वृद्धि होती है ।
ॐ आनन्द { ॐ आनन्द {| ॐ आनन्द {|| कि
तुम्हारा
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৭৭
२० रास बाग रोड, जयपुर
९--९--५४
स्नेहमयी, परम आस्तिक, दुलारी बिटिया,
सदव प्रसन्न रहो ।
तुम्हारे दोनों पत्र यथा समय मिल गये । पूवे पत्र में तुमने
प्रीति नहीं बन रही है, नित-नव-उत्साह नहीं बढ़ रहा है, आदि
बातों की विचार करने की चर्चा लिखी है। इस सम्बन्ध में मेरा
यह मत है कि अपने को समपंण करने के पश्चात् भय तथा
चिन्ता के लिए कोई स्थान ही नहीं रहता । जब तुम अपने में
अपना कुछ न पाओगी तब सब कुछ स्वतः हो जायगा । जो कुछ
हो रहा है, उसमें अपने प्यारे की लीला का अनुभव करो। जो
कुछ कर रही हो, उसे सावधानी पूर्वक उन्हीं के नाते मोह-
रहित, निष्काम भाव से, करती रहो । जो सर्व प्रकार से सर्व
समर्थ प्रभु के हो जाते हैं, वे मेरे नित्य साथी हैं ।
ॐ आनन्द ! ॐ आनन्द !! ও आनन्द !!! कि
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