हमारे जमाने की गुलामी टाल्स्टाय | Hamare Jamane Ki Gulami

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Hamare Jamane Ki Gulami by महात्मा टाल्स्टाय - Mahatma Talstay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ध हमारे जमने कौ गुलामी अस्वाभाविक और ऐसी जगहों और परिस्थितियों में काम करना पड़ता है जहां जान का खतरा होता है; साथ ही शहरों में उन्हें खराब, तंग और गंदे मकानों में रहकर ऐसा जीवन व्यतीत करना पड़ता है जिसमें कदम- कदम पर प्रलोमन और पतन की सामग्री होती है। और इतने पर भी उसे मजबूर होकर दूसरे की आज्ञा में रहकर उसकी इच्छानुसार काम करना पड़ता है। कुछ दिनों से परिश्रम का समय घटा दिया गया है और मजदूरों को तनख्वाहें बढ़ा दी गईं हैं । पर यदि उनकी बढ़ी हुई विलासपू्ण आदतों का खयाल न करे तो इससे उनका सच्चा कल्याण नहीं हुआ है। यह ठीक है कि अब ये कलाइयों पर घरियां लगाने लगे हैं, बीडी-सिगरेट अधिक पीने लग गये हैं ओर शराबखोरी आ्रादि भी बढ़ गई है | पर उनका क्‍या कल्याण हुआ ? उनका स्वास्थ्य, चारित्य और स्वाधीनता कितनी बरद गई मजदूरों के काम का समय घट गया है और उनकी तनख्वा बढ़ गई हैं | पर आ्राज जद्टां चाहें जाकर देखिए, देहात में काम करने वाले मजदूरों को अपेक्षा इन कारखानों में काम करने वाले मजदूरों का स्वास्थ्य, उनको ग्रौसत उम्र आदि अत्यंत असंतोप-जनक दिखाई देगी। आप उन्हें नीति और सदाचार में भी देहात के मजदूरों की अपेक्षा पतित देखेंगे। ग्रामीण-जीवन अत्यंत स्वाभाविक अत नीति-वधक, स्वतंत्र स्वास्थ्य-कर और नवीनता से भरा हुआ होता है। पारिवारिक जीवन के लिए देहात बड़े ही अनुकूल होते हैं | किसान का पवित्र जीवन आत्मा के विकास के लिए स्वाभावतः परमोपयोगी हे । क्या ऐसे सुन्दर स्वाभाविक जीवन के बिलुड़ने पर मनुष्य का पतन अनिवाय नहीं है ?




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