काल चक्र | Kal Chakra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
107
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)काल चक्र १५
प्रसिद्ध थी । बिदेस्िया भोजपुरी में गाया जानेवाला, राष्ट्-प्रेम से ओोतप्रोत गान
है। उनमें अंग्रेजों के जुल्मों का वर्णन शुंगार रस के माध्यम से होता और होता
आजादी की लडाई का निमंत्रण। बच्चारसिह की यह अभिरुचि उन्हें महंगी पड़ी
और पुलिस ने उन्हें विद्रोही करार किया। उनके आने-जाने पर नजर रखती और
'यदा-कदा पूछ-ताछ के लिए उन्हें अतरौलिया थाने पर बुलाती । वैसे भी
अतरौलिया भौर आस-पास का क्षेत्र स्वतंत्रता सेनाती बाबू कुंवर सिंह का साथ
देकर अंग्रेजों की आंखों में चढ़ गया था। इक्यासी वर्ष की आयु में बच्चा सिंह का
निधन सन् १६७० ई० में हुआ। उनका बनवाया हुआ दुमंजिला मकान बोधीपड्टी
'में घुसते ही पहली इमारत के रूप में दिखलाई पड़ता है।
उदय'राज सिंह के छोटे लड़के रामसेवक सिंह उर्फ दामोदर सिंह भिन्न
प्रकृति के थे। जमींदारी का सारा काम वही संभालते और उदय'राज सिंह के बाद
कुटुम्ब के कर्ता-धर्ता भी वही बने । दामोदर सिंह कद में लम्बे, छरहरे बदन के
थे। उनके व्यक्त्वि में विशेष आकर्षण था। बड़ी बुलंद आवाज थी। घुड़सवारी
का उन्हें शौक था और इस क्षेत्र के जाने-माने घुड़सवारों में थे। हमेशा अच्छे से
अच्छा घोड़ा रखा। शादी चाहे लड़के की हो या लड़की की द्वारपुजा के लिए लोग
उन्हें विशेष रूप से आमंत्रित करते | केसरिया साफा बांधकर जब वह अपने घोड़े
'पर बैठते तो द्वारपूजा पर आये बाकी घुड़सवार एक विचित्र हीन भाव का अनु-
भव करते और बोधीपट्ी के लोग गवें का। जमींदारी-उन्मूलन के बाद उन्होंने
घोड़ा रखना बंद कर दिया । फिर भी उनके पास लोग शरारती घोड़ों को फिराने
कै लिए लाते अथवा गोबिन्दसाह के मेले में घोड़ा खरीदने के लिए विशेषज्ञ
बनाकर ले जाते। अतरौलिया के पश्चिम, आजमगढ़ फैजाबाद सरहद पर स्थित
गोबिन्दसाहब पशु-मेला, विशेषकर घोड़ों के मेले के रूप में विख्यात था। मेला
अब भी यहां लगता है और पहले से अधिक भीड़-भाड़ होती है किन्तु घोड़ों के
व्यापारी बहुत कम आते है ।
आकषक व्यक्तित्व भौर स्पष्टवादिता के कारण दामोदर सिह लोगों के झगड़े
निबटाने, पंच परमेश्वर के सदस्य बनकर जाते । दामो दर भौर बच्चासिह की प्रकृति
इतनी भिन्न थी कि उन दोनों में कभी किसी बात को लेकर टकराव नहीं हुआ ।
दोनों ही एक-दूसरे की इज्जत करते थे । भ्रातृ-प्रेम के जीवंत उदाहरण थे। यद्यपि
शायद ही कोई समा रोह हो जहां दोनों एक साथ गये हों--घर में शादी-ब्याह की
बात और है | दुदिन आने पर सर्वप्रथम भाई-भाई अलग होते हैं। ठीक यही बात
बच्चा गौर दामोदर सिह के साथ हुई । गांव के आधे की हिस्सेदार थीं एक बाल-
विधवा जिन्हें छोटे-बड़े, औरत-मर्द, सभी अंगतवा की आई (आजी) कहते थे ।
अंगनवा की आई का जीवन उदय राजासह के घर में बीता । उनकी कोई संतान
नहीं थी । उदय राजसिह के पृत्नीं भर पौत्रो को वह् भपना पुत्र ओौर पौत्र समन्नती
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