विवेकानन्द साहित्य [खण्ड 5] | Vivekanand Sahitya [Khand 5]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
666
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विवेकानाय साहित्प १२
के तर्त्यो के बम्त्येत मौय निवर्मो का निरुपम किया गया है शौर सम्द्ौके हारा
हमारे दैनिक छीमन के कार्य संचाखझित होते हैं। इस भौल धिपर्यो को भुति के
अन्तत नही मान क्ये ये बास्तव में स्मृति के पुराणों के अन्तर्गत है। इसके साथ
पूर्गोक्त तत्यसमृह का कोई सम्पर्क सही है। स्वय हमारे राष्ट्र के अस्थर मी ये सब
बराजर परिवर्तित होते राये हैं। एक युग के किए जो विधान है बह दूसरे यूम के
सिए तही होता। इस युग के बाद फिर जब दूसरा युग जायेगा वव इनको पुन्
बदसमा पड़ेगा। भहामता ऋषिसण आबिर्मूत होकर फिर बेशकाकोपयोगी चये
लये म्ाचार-विधानों का प्रब्तेत करेंगे।
जीवाह्मा परमात्मा और ब्रह्माप्ड के इत समस्त अपूर्ष अनन्त उदात्त बौर
श्यापक ारणार्थों मे निहित जो मह्ान् तत्त्व है गे मारत मे ही उत्पत्त हुए है] केवण्
भारत ही ऐसा देख है जहाँ के कोर्यो ने खपते कबीते के छोटे छोटे शैवताओं के किए
यह कहकर खड़ाएँ पहीं की है कि मेरा ईस्वर सक्तचा है तुम्हारा झूठा आओ, हम
दोर्सो झडुकर इसका फ्रैसडा कर से। छोटे छोटे बेबत[मों के किए शड़कर फैसला
करने की जात केजछ यहाँ के लोगों के मुँद से कमी सुनायी हही दौ। हमारे यहाँ
के ये महांतू तत्य मनुष्य की अतब्त प्रकृति पर प्रतिष्यित होते के कारण इजारों बर्ष
पदप के समास नाज मी मागम जायि का कल्माण करने कौ क्लि रखते हैं।
जौर जब तक यह पृष्दी मौजूद रहेगी जितते दिनो तक कर्मबाद रहेगा णछब तक
हम ज्लोग स्यष्टि जौब के रूप में जस्म लेकर रूपती पाक्ति द्वार अपनी तियति
जग निर्माण करते रहेंगे तब तक इसकी पक्ति इसौ प्रकार बिल्लवमात रहेगी।
सर्बापरि, जब मैं यह बताता चाहता हूँ कि भारत कौ संसार को कौत प्ती देश
होगी। यदि हम खोप विभिप्त शाधियों क॑ मौतर भर्म की उत्पत्ति भौर विकास की
प्रणालौ का पर्यषेशण करें, तो हम सर्वत्र यहूँ देखेंगे कि पहले हर एक डपजाति के
भिन्न जिन्न दैवता भैे। इत लातियों में पे परस्पर कोई बिप्षेप सम्बन्ध रहूता हैं
तो টির লিজ লিক্ষপ ইতালী জ্চ एक साधारय ताम मी होता है। उदाहरणार्थ
बेमिडोनियत देवता को ही के को! लब बेडिछोनियत लोय विभिन्न जातिमों मे
विभकत हुए थे लब उतके मिप्त भिप्त देवताओो का एक साथारण साम था बार
डीक इसी प्रकार भहृदी जाति के बिमिभ्न देवताओं का सावाएजश ताम 'मोछोक
पा। छात्र हौ तुम दैकोपे कि कमी कमी इत दिमिप्त लातियो मे कोई छाधि सबस
सदिदः छ॒कतउाकिती हो उत्सी पी और रछ अति के লে অল शञ के शल्य দ্য
जातियोँ के राजा स्तीहत होने कौ माँग करते हैं। इससे स्वमाशत' बह होता था
कि घस काहि के कोप छझपने देशता को अम्पास्प जातियो के देशता कै छृप मै प्रति
प्थित करता भौ जाहूऐे थे। वेमिकोतियन रोम कहते थे कि बार गैरोडक' महातलम
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