महापरिनिर्वाण सूत्र | Mahaparinirvan Sutra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.15 MB
कुल पष्ठ :
177
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महापरिनिव्वान सुत्तं दे
(८) अथ खो. भगवा झचिर पककन्ते वस्सकारे ब्राह्मण मगघ
महापत्ते आयस्त' आनन्द. आमन्तेसि -“गच्छ सं आनन्द |
यावतिका मिक्खू राजगहं उपनिस्साय दिहरन्ति । ते सब्वे उपद्ानसा लायं
सन्निपातेही, ति ।”
( ८ ) तब मगवानने ० वर्षकार ज्राह्मणके जानेके थाकी ही देर वाद आयुष्मान्
घ्ाचस्दका संबोधित किया--
“जाओ, आनन्द ! तुम जितने मिक्ु राजगहके आसपास विहरते हैं, उन
सबके उपस्थान-शालामें एकत्रित करो ।”'
ियनययय-लयनननपयथननालाणणणणाणणणणणणणिनाण
सकता है' । तब राजासे कद्दा--“उपलापन से हमारे हारथी घोक नष्ट होंगे, मेद ( > फूट)
से ही पकत्ठना चाहिये 1०1”
“तो महाराज ! व्जियोंका लेकर ठुम परिषद्में बात उठाओ । तब मैं--
'मद्दाराज ! तुम्हें उनसे क्या है १ अपनी कृषि, वाणिज्य करके यह राजा (- प्रजातन्त्रके
सभासद् ) जीयें--कहकर चला जाऊँगा । तब ठुम बोलना--क्येांजी ! यह ब्राह्मण
वृण्जियोंके सम्बन्धमें हाती वातकों रोकता है? । उसी दिन मैं उन (< वल्नियां ) के
लिये सेंट ( > पर्णाकार) मेजूँ गा; उसे भी पकठकर मेरे ऊपर दोषारोपण कर, बन्धन,
ताठन श्रादि न कर, छुरेसे मुर्डन करा मुझे नगरसे निकाल देना । तब में कहूँगा--
मेंने तेरे नगरमें प्राकार और परिखा ( - खाई। बनवाई है; मैं दुबल ...तथा गम्भीर स्थानों
को जानता हूँ, झत्र जल्दी (तु) सीधा करूंगा! |. ऐसा सुनकर वोलना--'तुम जाओ ।
'“राजाने सब किया । लिंच्छुवियोंने उसके निकालने ( - निष्क्रमण) के सुनकर
कहा--'घ्राह्मण मायावी ( > शढठ) है, उसे गंगा न उतरने दो ।* तब किन््दीं किन्दींके
“हमारे लिये कहनेसे तो वह (राजा) ऐसा करता है” कहनेपर,--'तो भणे 1 थाने दे? ।
उसने जाकर लिच्छवियों द्वारा--किस लिये श्वाये £” पूछुनेपर, वह (सब) हाल कह
दिया । लिच्छवियोंने
“थोलीसी वातके लिये इतना भारी दंड करना युक्त नहीं था?
कहकर --'वहाँ तुम्हारा क्या. पद - (स्थानान्तर) था?--पूछा ।. “मैं विनिश्चय-महामात्य
था?--(कहनेपरो--“यहाँ भी (ठुम्हारा) वह्दी पद रहे”--कद्दां । वह सुन्दर तौरसे विनिश्चय
(इन्साफ) करता था । राजकुमार उसके पास विद्या (शिल्प) ग्रहण करते थे |
पने युर्शोंसे प्रतिष्ठित हो जानेरर वदद एक दिन एक लिल्छुवीकेा एक श्योर ले जाकर-+-
ग्रे
भ
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