महापरिनिर्वाण सूत्र | Mahaparinirvan Sutra

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Mahaparinirvan Sutra by भिक्षु किन्तिमा - Bhikshu kintima

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महापरिनिव्वान सुत्तं दे (८) अथ खो. भगवा झचिर पककन्ते वस्सकारे ब्राह्मण मगघ महापत्ते आयस्त' आनन्द. आमन्तेसि -“गच्छ सं आनन्द | यावतिका मिक्खू राजगहं उपनिस्साय दिहरन्ति । ते सब्वे उपद्ानसा लायं सन्निपातेही, ति ।” ( ८ ) तब मगवानने ० वर्षकार ज्राह्मणके जानेके थाकी ही देर वाद आयुष्मान्‌ घ्ाचस्दका संबोधित किया-- “जाओ, आनन्द ! तुम जितने मिक्ु राजगहके आसपास विहरते हैं, उन सबके उपस्थान-शालामें एकत्रित करो ।”' ियनययय-लयनननपयथननालाणणणणाणणणणणणणिनाण सकता है' । तब राजासे कद्दा--“उपलापन से हमारे हारथी घोक नष्ट होंगे, मेद ( > फूट) से ही पकत्ठना चाहिये 1०1” “तो महाराज ! व्जियोंका लेकर ठुम परिषद्में बात उठाओ । तब मैं-- 'मद्दाराज ! तुम्हें उनसे क्या है १ अपनी कृषि, वाणिज्य करके यह राजा (- प्रजातन्त्रके सभासद्‌ ) जीयें--कहकर चला जाऊँगा । तब ठुम बोलना--क्येांजी ! यह ब्राह्मण वृण्जियोंके सम्बन्धमें हाती वातकों रोकता है? । उसी दिन मैं उन (< वल्नियां ) के लिये सेंट ( > पर्णाकार) मेजूँ गा; उसे भी पकठकर मेरे ऊपर दोषारोपण कर, बन्धन, ताठन श्रादि न कर, छुरेसे मुर्डन करा मुझे नगरसे निकाल देना । तब में कहूँगा-- मेंने तेरे नगरमें प्राकार और परिखा ( - खाई। बनवाई है; मैं दुबल ...तथा गम्भीर स्थानों को जानता हूँ, झत्र जल्दी (तु) सीधा करूंगा! |. ऐसा सुनकर वोलना--'तुम जाओ । '“राजाने सब किया । लिंच्छुवियोंने उसके निकालने ( - निष्क्रमण) के सुनकर कहा--'घ्राह्मण मायावी ( > शढठ) है, उसे गंगा न उतरने दो ।* तब किन्‍्दीं किन्दींके “हमारे लिये कहनेसे तो वह (राजा) ऐसा करता है” कहनेपर,--'तो भणे 1 थाने दे? । उसने जाकर लिच्छवियों द्वारा--किस लिये श्वाये £” पूछुनेपर, वह (सब) हाल कह दिया । लिच्छवियोंने “थोलीसी वातके लिये इतना भारी दंड करना युक्त नहीं था? कहकर --'वहाँ तुम्हारा क्या. पद - (स्थानान्तर) था?--पूछा ।. “मैं विनिश्चय-महामात्य था?--(कहनेपरो--“यहाँ भी (ठुम्हारा) वह्दी पद रहे”--कद्दां । वह सुन्दर तौरसे विनिश्चय (इन्साफ) करता था । राजकुमार उसके पास विद्या (शिल्प) ग्रहण करते थे | पने युर्शोंसे प्रतिष्ठित हो जानेरर वदद एक दिन एक लिल्छुवीकेा एक श्योर ले जाकर-+- ग्रे भ




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