वीर विनोद खंड 2 | Veer Vinod Khand 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महाराणा असरसिंह २.3 चीरविनोद महाराणाके नाम वजीरका खूत- ७३५४ कोस तक चौकीदारी करते रहें. यकीन कि वह सदार मुनासिव चक्तमें अर्ज़ करके जवावसे इत्तिछा देंगे. हि० १११० न वि० १७५५ से ई० १६९८ . ३- वजीरका स्वृत महाराणा अमरसिंहके नाम नणपपशसनिााण हमेशह चादशाही इनायतोंमें शामिठ रहकर खुश रहें दोस्तीकी वातें जाहिर करनेके वाद माठूम हो कि उस दोस्तका पसन्दीदह ख़त पहुंचा उसमें बयान है कि बांसवाड़ा देवलिया डूंगरपुर ओर सिरोहीके जागीरदार मसुनद नशीनीके वक्त कुछ चीजें तुददफेके तोरपर कृदीमसे देते हैं इन दिनोंमें खुमानसिंह डूंगरपुरका जुमीदार इन्कार करता हे. खुमानसिंहके ठिखे हुएसे ऐसा अर्ज हुआ कि उस दोस्तने जुर्मीदारको पैगाम भेजा था कि अ्रगर झारीक बने तो पर्गनह माऊपुरा बगेरहको लूटकर चित्तौड़में कृ्ज़ा करे ठेकिन्‌ जूर्मीदारने यह वात कुबूल न की. इसके वाद उस उम्दह सर्दारने अपने काका सूरतसिंहको जमींदारकी जागीर ठूटनेको रवानह किया ठड़ाई होनेपर दोनों तरफके आदमी मारे गये. अव उस उम्दह भाईने दुबारा दूसरी फोज भेजी है यह वात वादशाद्दी दू्गोहमें वहुत खराव साठूम हुई. इस मोकेपर इस दुनयाके खेरख्वाह में ने एथ्वीसिंह शोर रामराय च्यौर वाघमठ वगेरह उस दोस्तके नौकरोंकी ्ूजके मुवाफिक इुजूरमें जाहिर किया कि डूंगरपुरके वकीछने जाली खत बना ठिया है उस दोस्तका मत्ठव अर्ज कर दिया गया. बादशाही डुक्मसे इस मुकृदमेकी तहकीकातके चास्ते शजाओ्तखांको ठिखा गया हे कि अस्ठ हाठ दर्याफ्त करके ठिख भेजे सुनासिव यही है कि बादशाही मर्जीकि खिलाफृ कोई काम न किया जावे जियादह केंफियत जगरूप बकीठके ठिखनेसे माऊम होगी. ता० १० सफुर सन्‌ ४३ जुलूस हित्री ११११ विक्रमी १७५६ श्रावण शुकत १२ न ई० १६९९ ता० ९ ऑगिस्ट . किसी ४ किसी घादशाही नौकर कायस्थ केशवदासकी दर्ख्वीस्त महाराणा २ अमरसिंहकी सिद्मतमें नािडिसास्ि विहिइतके मानिन्द महफिठके बेठने वाठे ओर इन्साफके फुर्शको सेनक्‌ देने वाले वख़ुशिश ओर इदसान फेठाने वाले बड़े ताकृतवर बन्द द्रजेके रॉजाकी




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