अध्यातम प्रबोद देशनासर | Adhyatam Prabod Deshnasar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ११ ]
८ डिविया में भरे कज्जल चूर्ण के समान कर्मवर्गणाएँ समस्त
लोक मे भरी पडी हैं। उनमे से कुछ पुद्गलो को ग्रहण कर
आत्मप्रदेशो के साथ मिला कर लोलीभूत कर देना बन्ध है ।
& संवर और निजेरा द्वारा सम्पूर्ण कर्मों का क्षय हों जाना
मोक्ष ই। । ^
मे लव तत्व या पदार्थ ह ! इनमे एक जीव है, शेष (१) धर्मा-
स्तिकाय (२) अधर्मास्किय (३) आकाशास्तिकाय (४) काल और
(५) पुद्गलास्तिकाय, ये पाँच अजीब हैं । व
आत्मप्रदेशो मे रहे हुये शुभाशुभ कमं प्रकृति रूप पुण्यपाप है । ह
मास्व सवर, निर्जरा, बन्ध जीव के परिणाम है । सम्यगज्ञान सम्यग-
दर्षन, सम्यगचारिव्र व सम्यग् तप के प्रकषे से आत्मा का कर्माचरण
रहित हो जाना मोक्ष है । जीव और अजीव की स्थिति सर्वकालिक
है । पुण्यपाप कर्म प्रकृतियों की स्थिति जितनी जीव बाँधघ॑ता है उतनी
होती है, जसे कि सातावेदनीय कम की पनरह कोडा कोडी सागरोपम
की और असातावेदनीय कर्म की तीन कोडा कोड़ी सागरोपमभ्की
उत्कृष्ट स्थिति है । इस प्रकार प्रज्ञापना सूत्र से सभी कमं प्रकृतियो की-
स्थिति जाननी चाहिये । आस्रव अध्यवसाय की जघन्य स्थिति,एक-
समय की.जौर-उक्कृष्ट स्थिति आठ समय की होती है, ऐसे ही सवर
अध्यवसाय की भी इतनी ही स्थिति - है। निर्जरा व मोक्ष की एक
सामयिकी स्थिति है । व्यवहार तय् से वन्ध की-स्थिति श्री'एक
समय की ही है, ऐसा जानना चाहिये । ये तत्थ्य भाव है,इन तथ्य भावो,
का सद् भावरूप से “श्रद्धाल--यथार्थे उपलब्धि से यथार्थ नि््गरिण ही.
सम्यग्दर्शन है” ऐसा जानना चाहिये । প্র ৯
~
४
उस-सम्यक् श्रद्धा को दिखलाने वाली गाथा श्रज्ञापना' के पद
मे इस प्रकार है ~ - । ८ गे
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