रक्त - गुलाल | Rakt Gulal

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Rakt Gulal by पन्नालाल पटेल - Pannalal Patel

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“तुम कुछ भी कहो, पर वास्तविकता यही है कि दादागुरु मेवाड़ के राजगुर है । सुना है कि जव बतंमात महाराणा राजसिह का जन्म हुआ था तो इन्ही दादागुरु ने उनकी जन्म-कुडली कटार की नोक द्वारा अपने लहू से लिखी थी । इसके बाद वे तपस्या करने के लिए हिमालय की गोद में चले गए । कहते है वहा ढुर्गा ने उन्हें दर्शत दिया और आशीर्वाद प्रदान कर वापस मेवाड भेजा । मा दुर्गा ने उनसे कहा था कि जिस प्रकार राजसिंह की कुंडली तुमने अपने लहू से लिखी है, ठीक उसी प्रकार से उसका राज्य- काल भी नहु के अक्षरों से लिला जाएगा । सजर्सिह मेवाड़ की धरती को आततायी विधर्मियों के रक्त से सी्चेगे ओर अततः मुगल-सम्राट को राजपूताने से खदेड देभे । सिफं इतना ही नही, मां दुर्गा ने तो यहु भविष्य- वाणी भी की थी कि दिल्‍ली का सिहासन राजसिह के हाथों ज्जरित होगा और जिस तेजी के साथ मुगल-सम्राट का उदय हुआ था, उसी तेजी के साथ वह भारत-भूमि से अंतर्धान भी हो जाएगा ! ” “नाहरासह | मुझे तो मृुगल-साम्राज्य के अंतर्धान होने की बात विश्वसनीय नहीं लगती, पहले सैनिक का विरोध पूर्ववत्‌ जारी था। “सच्ची बात तो राम जाने राठौड़ ! परंतु उस दिन से दादागुरु राजपृताने के छोटे-बड़े रजवाड़ो मे बराबर घूम रहे है और शक्ति की आराघना करते हुए उन्हें झंझोड़ रहे है', और फिर धीमे स्वर में जोड दिया, “इस देवालय में तो वे केवल दोपहर या रात ही गुजारते हैं ।” पहला सैनिक मूछों पर हाथ फेसता हुआ अभी भी जैसे बाल की खाल खींचता हो, यो नाहरसिह की बात में से झूठ खोज रहा था । उसने अविश्वासपूर्ण स्वर में कहा, “प्रश्त यह है कि यदि राजसिहु की कुंडली दादागुरु में बनाई थी तो उस बात को बीते कितने वर्ष हुए ? महाराणा राजसिह के दोनों कुंवर---जयसिह और भीमसह--यदि आयु में तुम्हारे बराबर नहीं तो मेरे बराबर पच्चीसेक साल के तो है ही; तो फिर दादा- गुरु की उम्र कितनी है ? “दादागुरु की उम्र तो राम जाने ! पर एक बात कहूं ? आज से लगभग बीस साल पहले मैं तया-तया नौकरी में लगा था और आज की ही तरह वतमान राजमाता के साथ यहां भाया था नि तब उनको जैसा 2‡;: रक्त-गुलाल




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