एकांकी समुच्चय | Ekanki Samucchya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
647 MB
कुल पष्ठ :
268
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६)
-कुलीना-्राज सायंकाल से पहले-पदले वह फिर लड़ने को चला
जाएगा । ( महामाया के सिर पर स्नेह से हाथ फेरकर ) वह स्वभाव से
योद्धा है, इस क्षणिक जीवन में प्रेम का भाव ज्यादा देर तक स्थिर
नहीं रह सकता।
महामाया--( ग्राशापूर्ण स्वर से)--आज सायंकाल से पहले-पहले
फिर लड़ने को चले जाएँगे, यह कौन कहता है ?
कुलीना-नमैं ।
महामाया--आप इन शब्दों का अर्थ सममती हैं ?
कुलीना--( हाथ बांधकर ) मेरा अपराध क्षमा हो, मेरा तात्यये
यह की नहीं था।
कुलीना--चलो लड़कियो ! वह् कमरा खाली कर दो ( सहेलियों का
चला जाना ) ले मेरी वच्ची ! वह आ रहा है, उससे अच्छी तरह पेश
आना, ओर कदना-एसाईघर में चलिर, मेरी श्रद्धा है। अपने हाथ से
हलवा वनाऊँ और आपको अपने सामने बेठाकर खिलाऊँ।
महामाया--मैं हलवा वनाकर खिलाऊँगी ! नहीं यह मुझ से न
होगा, माँ !
कुलीना--यह उसके मानसिक रोग की अमोघ औषधि है।
महाग्राया--(आशइचर्य सें)--इलवा !
कुलीना--यह हलवा उसके गले के नचे न उतरेगा । वह.इसे
केवल एक बार देखेगा और घोड़े पर चढ़कर. किले के बाहर निकल
जाएगा। मैं उस भूले हुए शेर-बच्चे को शीशे के सामने लेजाकर मुह
दिखा देना चाहती हूँ।
महामाया--फिर इस हलवा का क्या होगा ?
बुलीना--पुत्र के पुनरुत्थान के उपलक्ष्य में किले की स्त्रियों में बाँठा
` जाएगा ।
( कुलीना हेस कर चली जाती है । }
महामाया--भगवान उनकी आँखें खोल दे, नहीं तो मेरा जीवन मेरे
तिर. असहा हो जाएगा ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...