एकांकी समुच्चय | Ekanki Samucchya

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Ekanki Samucchya by जयनाथ नलिन - Jaynath Nalin

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६) -कुलीना-्राज सायंकाल से पहले-पदले वह फिर लड़ने को चला जाएगा । ( महामाया के सिर पर स्नेह से हाथ फेरकर ) वह स्वभाव से योद्धा है, इस क्षणिक जीवन में प्रेम का भाव ज्यादा देर तक स्थिर नहीं रह सकता। महामाया--( ग्राशापूर्ण स्वर से)--आज सायंकाल से पहले-पहले फिर लड़ने को चले जाएँगे, यह कौन कहता है ? कुलीना-नमैं । महामाया--आप इन शब्दों का अर्थ सममती हैं ? कुलीना--( हाथ बांधकर ) मेरा अपराध क्षमा हो, मेरा तात्यये यह की नहीं था। कुलीना--चलो लड़कियो ! वह्‌ कमरा खाली कर दो ( सहेलियों का चला जाना ) ले मेरी वच्ची ! वह आ रहा है, उससे अच्छी तरह पेश आना, ओर कदना-एसाईघर में चलिर, मेरी श्रद्धा है। अपने हाथ से हलवा वनाऊँ और आपको अपने सामने बेठाकर खिलाऊँ। महामाया--मैं हलवा वनाकर खिलाऊँगी ! नहीं यह मुझ से न होगा, माँ ! कुलीना--यह उसके मानसिक रोग की अमोघ औषधि है। महाग्राया--(आशइचर्य सें)--इलवा ! कुलीना--यह हलवा उसके गले के नचे न उतरेगा । वह.इसे केवल एक बार देखेगा और घोड़े पर चढ़कर. किले के बाहर निकल जाएगा। मैं उस भूले हुए शेर-बच्चे को शीशे के सामने लेजाकर मुह दिखा देना चाहती हूँ। महामाया--फिर इस हलवा का क्या होगा ? बुलीना--पुत्र के पुनरुत्थान के उपलक्ष्य में किले की स्त्रियों में बाँठा ` जाएगा । ( कुलीना हेस कर चली जाती है । } महामाया--भगवान उनकी आँखें खोल दे, नहीं तो मेरा जीवन मेरे तिर. असहा हो जाएगा ।




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