मनोरंजन पुस्तक माला -5 | Manoranjan Pustak Mala -5

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Manoranjan Pustak Mala -5 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मांसभत्तणा । यद्यपि बहुत ही समक्ष कर पंडित जी ने कांतानाथ फो भेज दिया श्औौर भेज देने में क्या भी श्रच्छा हो, किंतु इनका मन उसके चले जाने से यड़ा हो गया । यह उनका श्र चह इनका मन मैला नहीं दोने देते थे । दोनों में श्साधारण थी श्रौर इस लिये लोग इन्हें “राम लपमण की सी जोड़ी” कहा करते थे । इस समय यदि भाई पर विपत्ति है तो उससे चौशुनो इन पर है। यह समझ कर इन्होंने भी उसके साथ ही लौट जाना चाहा था फितु जो काम उठाया उसे चाहे जैसी विपत्ति पड़ने पर भी न छोड़ना, थददी इनका सिद्धांत था। इसी के श्रल्लुसार इन्हीने किया शीर जय यह घचबड़ाने लगे तब इनकी चिपत्ति की संगिनी ने इनको धीरज दिलाकरः संताप कराया । उसने इनको समका दिया कि-- “चाहे जैसी चिपत्ति पड़े छोटे मैया छापके छोटे मैया हैं। झौर तार से झजुमान दोता हैं कि देवरानी के चरित्र का मामला दे फिंतु थभी तक छल चियड़ा नददीं है। चदद अवश्य साम, दाम, दंड और भेद से सैँमाल सैँगे । '्याप घवड़ाइए नहीं ।




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