नानेश वाणी | Nanesh Vaani

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Nanesh Vaani by आचार्य श्री नानेश - Acharya Shri Nanesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जर्व-त्याग की साधना कुथु जिन मनड़ो किम दहिन वाजँ कुथुनाथ भगवान्‌ के चरणो मे मन की फरियाद लेकर कवि उपस्थित हो गया है। मन की शिकायत परमात्मा के सामने रखी जा सकती हे, परन्तु क्या इस भावना से कि वे इस मन को पकड कर ठीक कर देगे या कि उसे वश मे कर लगे अथवा उनक पास अर्ज करने से मन की गति एकाग्र वन जायगी ? इस प्रकार की भावना से यदि प्रभु के चरणों में निदेदन ४ किया गया तो वट केवल निवेदन करूप म ही रहेगा। वचनो का सदुपयोग हो जाने च == न्‌ पुण्य का वन्ध हो सकता है, परन्तु मन को एकाग्र वनाने के जिस इद्ेश्च को ইল चलना चारता ६, उस उदेश्य की पूर्तिं इस निवेदन से नहीं हो सकंगी । ल स् न्प् है इस भावना मे भ्रान्ति ₹। एेसी भावना करने वाले के सम्यन्ध मे यह कहा जा र्== ३ = उह सह्ठी तरीके से परमात्मा के स्वरूप को नहीं पहिचानता, अपने जीवन ली शक्तिक्ष जन नहीं रखता तथा साधना की स्वस्थ रीति को नहीं समझता है। दह लेएल पञ ङन्छनन्==ल सूप मे परमात्मा के चरणा म॑ निवेदन कर रहा है।




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