शैव मत | Shaiv Mat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
349
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम अध्याय ५
देती है, अतः यह उपमा भी शीघ्र ही अ्रतिशयोक्ति में बदल जाती है और रुद्र के समान ही
सोम के भी गर्जन और रचण का उल्लेख होता है ' । सोम के इस गर्जन और रवण के
कारण ही सम्भवतः उसको एक स्थान पर वृषभ की उपाधि भी दे दी गई है ।
उड़ के स्वरूप की जो ब्याख्या ऊपर की गई है, उसकी पुष्टि इस बात से भी होती है
कि ऋग्वेदीय यूक्तों में रुद्ध का अग्नि से गहरा सम्बन्ध है। अग्नि को अनेक बार रुद्र कहा
गया है ' । यह ठीक है कि अग्नि को रुद्र मात्र कहने का ही कोई विशेष अर्थ नहीं है;
क्योंकि ये सब केबल उपाधि के रूप में भी किया जा सकता है जिसका अर्थ है--क्रूर अथना
गर्जन करनेवाला, और इसी अर्थ में इस उपाधि का इन्द्र और अन्य देवताओं के लिए भी
प्रयोग किया गया है}! परन्तु एक स्थल पर दुद्र को 'मेघापति' की उपाधि दी गई है | इससे
रुद्र और अग्नि का तादात्म्य कलकता है। यदि हम रुद्र को विद्युत् का प्रतीक मानँ, जौ
वास्तव में अरिनि ही है, तो इस तादात्म्य की आसानी से समझा जा सकता है। उत्तर-
कालीन वैदिक-साहित्य में इस तादात्म्य को रपष्ट रूप से माना गया है और फलस्वरूप
'सायणाचार्य” ने निरन्तर दोनो को एक ही माना है। रुद्र और अग्नि के इस तादात्म्य
को ध्यान मं रखते ए हम शायद सद्र की द्विबर्हा ! जैसी उपाधियों का भी समाधान अधिक
अच्छी तरह कर सकते हैं। इस शब्द का अनुवाद साधारणतया श्टुगुने बल काः अथवा
<दुगुना बलशाली' किया जाता है। परन्तु इसका अधिक स्वाभाविक और उचित शञ्रर्थ बही
प्रतीत होता है जो मायण' ने किया है। त्र्थात्--
द्योः स्थानयोः पथिभ्याम् अन्तरिषे परिक्चः ^
य त्रं विद॒त् पर पूरी तरह लामू होता ই) क्योंकि विद्यु तू ही जब प्ृथ्व्री पर आती है,
तब अग्नि का रूप धारण कर लेती है। अथवा हाः शब्द का श्रथ यह कलंगी सेह जैसा
कि बहीं (अर्थात् मोर) में, द्विबर्हा का अर्थ हो सकता है---दो कलँंगीबाला ) इस अर्थ में इस
शब्द का सकेत दुकाटी विद्य त् की ओर होगा ।
इस सम्बन्ध में एक गेचक बात यह हैं कि ऋग्वेद के प्राचीनतम भागों में रुद्र और अग्नि
का तादात्म्य नहीं है; बल्कि उनमें स्पष्ट भेद किया गया है। इससे प्रतीत होता है कि
विद्य॒ तू के प्रतीक रुद्र ओर पार्थिव वह्नि के प्रतीक अग्नि का वादात्म्य वैदिक ऋषियों को
धीरे-धीरे ही ज्ञात हुआ था; किन्तु एक समय ऐसा भी था जब इन दोनो को अलग-अलग
तत्व माना जाता था ।
झद्गर+- अग्नि, इस साम्य को एक बार मान लेने पर, इसको बड़ी सुगमता से रू द्रज अरिन-
सूर्थ तक बढ़ाया जा सकता है, और कुछ ऋग्वेदीय सूक्तों से ही प्रतीत होता है कि उस
समय भी रुद्र और सूर्य के इस तादात्म्य को ऋषियों ने पहचान लिया था। इससे हमें
१. ऋऑवेद : 8, ८६, 8; 8, ६१, ३६ १, ४५, ४ श्त्यादि ।
२ রি 2 €, ७, ३।
३. এ ४ २, २, ६; है, २, ४ |
ধা त : १, ४, ४।
भर ५, 4: ?, ११४, ६ पर सायण की टीका।
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