मोक्षमार्गप्रकाशका | Mokshamargaprakashaka

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Mokshamargaprakashaka by रामप्रसाद जैन - Ramprasad Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(২) युद्धिशालियोंके भारयका विषय ই | परंतु उनका सरल स्वस बुद्धिवालेकि लिये बनाया हुआ देशभाषामय जे यह मोक्षम प्रकाश है इसीकी मामिक गहराईके साथ सुध्ंललित संकलित और संबद्ध रचनाको भी देखकर वुद्धिमानांकी चुद्धि क्रित होनाती है। इस ग्रंथकी गहरी दृष्टिप्ति मनन करन पर मारुम हो जाता है कि यह पंथ साधारण प्रथ नही है किंतु इस कोटिका एक अनूठाही महत्वपूर्ण अंयरान हे । तथा इसके कती भी अनेक शासक मरम॑त्त अपूर्व प्रतिमालञारी विद्वान्‌ थे! इत भ्॑मका विषय सवे हितकर ओर महान्‌ गंभीरा- शयके लिये हुए हे 1 तथा आदि लेकर जहांतक इसका निर्माण हुआ है वहांतक कहीं भी यह अपने विपयसे स्पल्ति नहीं है। किंतु सर्वांगरुपसे सुपंवद्ध और सुहावना है । प्रंथविषयक विशेष परिचय, इस अंथका विपय सुख्यतया वीतराग विज्ञानतारूप मोक्षमागको लेकर उप प्रपतगके अनेक श्रद्धा भाजन अकार्य विपयोंकोी लिये हुए है। হম সম मिस २ विषयका प्रतिपादन किया है उप्तको स्यं शंका समाधानके साथ उत्तम विशद रीतिसे वर्णित किया है। तथा इसमें वीतराग विज्ञानताके मुख्य साधक सम्यक्त्वादि रत्नत्नयकी सवि- स्तर सहायक सामिग्रके साथ विशेषरूपसे वणित किया है। तथा उसके मख्य विपक्षी मिथ्यात्क स्वरूपाविषयोस कारणविपयांस भेदाभेदविपरयांसरूप वेदान्त मीमांस सांख्य योग न्याय वेशेषिक




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