विसर्जन अवधारणा एवं प्रक्रिया | Visarjan Avdharana Avam Prakriya
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
36
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हत्या करने, बलात् अनुशासन करने, पराधीन बनाने, अस्पृश्य मानने, शोषित
ओर विस्थापित करने जैसे कार्यो से विरत होता हू, उसका विसर्जन करता हू।
$ रै स्थावर जीवो (पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु ओर वनस्पति) की हिंसा
का परिमाण करता हू |
` द्र्य ठी दृष्टि से - मेरा प्राणातिपात विरमण व्रत का यह रूप रहेगा।
क्षेत्र से - सभी क्षेत्र मे लागू है।
काल से - जीक्न पर्यन्त लागू रहेगा।
भाव से - रागद्वेष-रहित, उपयोग-सहित पालन करूंगा/करूगी।
गुणसे - - यह आराधना संवर निर्जरा का हेतु है।
इस व्रत के पाच अतिचार होते है जिन्हे श्रमणोपासक को जानना चाहिए और
उनका आचरण नही करना चाहिए -
किसी त्रस जीव का - १ वध (हत्या और मारपीठ) न करना, २ उसे हाथ-
पैर मे बेडिया डालकर बन्धन मे न जकडना, ३ उसके हाथ-पैर काठकर अपग
न बनाना, ४ अतिभार न लादना, ५ भक्त-पान विच्छेद नहीं करना।
इस तरह के अतिचारो से बचना चाहिए। यदि मुझ से कोई अतिचार
सेवन हो गया हो तो मै उसके लिए प्रायश्चित करता हू। जिसके साथ ऐसा
अतिचार सेवन हुआ उससे क्षमा मागता हू|
पहले व्रत की भावना - ससार के समस्त प्राणियो के साथ मेरे चित्त मे
सदा “आत्मौपम्य” भाव बना रहे। किसी भी परिस्थिति मे मै शोषण, दमन,
क्रूरता आदि अमानवीय प्रवृत्तियो से बचता रहू। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप मे मेरे
कारण अन्य किसी भी मनुष्य या मनुष्य-समुदाय को अपने जीवन की
न्यूनतम आवश्यकताओ से भी वचित होना पड़े, ऐसी जीवन-शैली से मै बचता
रहू। व्यवहार मे करूणा, संवेदनशीलता ओर मैत्री भावना का अधिकाधिक
प्रयोग हो, इसका मै ध्यान रखू।
२ दूसरे स्थूल मृषावाद विरमण व्रत मे मे स्थूल रूप से मृषावाद से विरत
होता हू। इसकी धारणा पांच तरह से करता हू .-
৭ किसी कन्या या वर के बारेमे वैवाहिक सबधो मे २ पशु-विक्रय या चल
सपत्तःविक्रय मे ३. भूमि-विक्रय या अचल सपत्ति-विक्रय मे ४. झूठे
सिद्धातो कीप्रूपणा करना ओर उन्हे प्रतिष्ठित करना और ५, झूठी गवाही
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