प्रगतिवाद की रूप रेखा | Pargativaad Ki Roop Rekha

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Pargativaad Ki Roop Rekha by श्री शिवचंद्र जी - Shri Shivchandra Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ प्रगतियाद की रूप-रैला और अपने को स्वयं प्रगतिशील घोषित कर उसी सीमित के श्रनुरूप गाहित्य फी यट्टि करते हैँ | परन्तु उनका सादित्य व्यावद्ारिफ शान दिलाने में अच्चम रहता है। इसलिए कि साधारण स्तर पर टिकने बालों की परिध्यिति से थे श्रपरिचित ई, उनका कष्णा-कौना छिक्त नदीं। पर काझंशिक वातावरण उपस्थित करने के लिए. श्रपनी वाणियाँ श्रवश्य यूँसते | यथार्थता के प्रचार पर जोर देते हूँ, किन्तु स्वयं इतनी 'ऋत्रिमता? मे विचरते हैँ कि ययार्यता का शान नहीं रखते | स्पष्ट है कि शब्दों के जाल पर ही साम्मवाद की व्याख्या नहीं हो सकती | काव्य में प्रभाव डालने फी एक श्रपूर्व शक्ति है, अतः उसी एक शक्ति द्वारा निम्नों के श्रमावों को चर्चा इम कर सकते ६ | गद्य-पद्य दोनों श्राभ्यभूत अंग है, परन्तु एक की शक्ति का अधिक उपयोग होता है | साम्यवाद की समाजवादो प्रक्रिया के लिए. आवश्यक है कि उसका हम समुचित अध्ययन करें | अध्ययन के ब्रिना हमारी कोई भी, कैसी भी सार्थकता नहीं सिद्ध दो सकती | मध्यवर्ग की भी अपनी ऐसी अनेक आन्तरिक परिस्यितियाँ हूँ, जो वाध्य करती हूँ, क्रान्ति की जढ़ उखाड़ने के लिए, एक जवर्दस्त श्रध बने के लिए । परन्तु यह सत्य है कि उनसे भी अधिक विवश अमावपूर्ण परिस्थिति निम्नों की है। श्र इन्हीं के लिए बहुत कुछ करना है| किन्तु साम्यवाद के विद्धान्त के प्रचार के निर्मित्त सर्व-वर्ग के अभाव की पूर्ति का प्रयत्न करना होगा । भारतवर्ष में निम्नों को संख्या अभाव-चैच में अधिक है। और उनकी क्रियायें भी इतनी निर्मल हैं और सुंकुचित हें कि व्यापक प्रभाव पूर्य-कार्य करने में अ्रसमर्थ है। गति-विधि परखने के लिए. इनको-उनकी आँखें मिली रहनी चाहिये । श्रन्यथा एक दूसरे के श्रभाव की पूर्सि का प्रकार भी ठीक नहीं होगा। निम्न, कमे करते ईं, पर उस पर विश्वास करने को वाध्य नहीं दोते | चूँकि विश्वास-बल उनमें है ह्दी नहीं। अपने आप का शान उन्हें हो जाय तो, दूसरों पर ध्यान देने आऔर सोचने भी उन्हें आ सकता है| परन्तु इसके लिए. मध्य-त्रग के पठित व्यक्तियों की आवश्यकता दोगी.। एक ओर जन-बल के एकन्नीकरण के लिए. ऐक्य पर आधिक जोर देना होगा, दूसरी ओर उनकी शक्ति के सदुपयोग के लिए. इधर भी उनके कार्य प्रशंसनीय होंगे। फिर सुचाररूप से कार्य संचालन द्वोगा । परन्ठु संचालक में पूर्ण योग्यता रहइनी चाहिये, सत्र की | अन्यथा उसे सफलता शायद न मिल सके । अजन-संघ के संचालन में मत्तिष्क की सारी शक्तियाँ मजबूत रइनी चाहिये । मध्य, उच्च, शिष्ट अपने को इतना पूण समझते हैं कि और अपने से निम्नों की अपूर्यता पर ध्यान देने की




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