भारतीय कलाविद् | Bhartiya Kalavid
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्मृति ^ 1:
काठमाणडू भज्य गया जाने से पहल में डा0 शमा से भा मिला उन्हाने मुझ एक
मूल्यवान सलाह दी। उन्हीन कऋड्टा, ऋाठ्माण्ड আন आर भाद गब (भक्तपुर)
के संग्हालयों में जाकर वहाँ प्रस्तर, धानु या काप्ठ कला की मृतियों की सूची
अवश्य तेसार करना। आजकल में उन कला कृतियों की सूची तैयार कर रहा हैँ.
जो किसी समय भारत से बाहर चली गईं। हो सके तो तुम नेपाल की ऐसी ही
कलाकृतियों को विवस्णात्मक सूचियाँ तेयार करना। ” मने उनकी मुल्यवान
सलाह क्रा कार्यान्विते भौ बड़ श्रम से कर लिया। आधार विदेशी संग्रहालयो के
कैटलॉग पुस्तक और पन्न पत्रिका थों, लेकिन आज डॉ0 शर्मा कहाँ हैं? वे
अपन आगध्य शिव में बिलीन हा चुके है।
मेर पास उनकी एक अति दुर्लभ स्पूति शघ है। उनका उस समय का चित्र,
जब व भारतीय कला की प्रदर्शनी लकः 'मान्ट्रयल' गए थे। उनके तथा किसी
अम्य बिद्वाम क बीच में भगवान् शिव की एक कलापूर्ण प्रस्तर प्रतिमा है। डॉ0
शर्मा का 'इण्डियाज कन्ट्रीव्यूशन द् वर्ल्ड थॉट एण्ड कलचर' (मद्रास) में प्रकाशित
एक लेख शिव आइकन्स ऑफ नेपाल' बहाँ मेरा मार्ग दर्शक बना था।
0 নও 80 হানা ओर इ विनोद प्रकाश द्विवेदी से मेरे सम्बन्ध प्रगाढ
हांते गए। इन लोगो ने मुझ अपने लेखों के ' ऑफप्रिट्स' देने कौ कृपा भी की।
यदि यह विद्रान जीवित रहते तो भारतीय कला, संस्कृति और इतिहास के
भण्डार को ने जाने कितनी मणियाँ दे जाते! दुःख तो यही है कि दोनों का
आकस्मिक. निधन हो गया। ये गुच्छं तो विना खिले तौ नहीं रहे पर दिक् दिगन्ते
में अपनी पूरी सुर्रभा बिखेरे बिना ही चले गए। इन गम्भीर जिम्मेदारियों के बाद
भी इतना शोधपूर्ण, श्रम साध्य लेखन !'
सन् 1975 में मुझ भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद, नई दिल्ली ने
सीनियर रिसर्च फैलोशिप दी। सस्था के नियमों क॑ अनुसार मुझे किसी मान्य
सस्था स मम्बद्ध होने के लिए कहा गया। मै भारतीय विध्या सस्थान (इंस्टीट्यूट
ऑफ इण्डोलांजी।, दरियार्गज से सम्बद्ध हो गया। संस्थान क संस्थापक
डॉ0 धर्मेन्द्र नाथ शास्त्री ने वहाँ इस शर्त पर आवास देने की कृपा की कि सस्थान
के पी एच0 डी0 के उन छात्र-छात्राओं को, जिनका विषय कला से सम्बन्धित है,
शोधकार्य में सहायता दुँगा। भारतीय विद्या संस्थान अक्सर अपने यहाँ किसी
विद्वान् के व्याख्यान का आयोजन करती थी और उसमें दिल्ली के गण्यमान्य
विद्वानों तथा बुद्धिजीवियों को आमन्त्रित करती थी। अगला व्याख्यान श्रीकृष्ण
जन्माष्टमी पर आयोजित हुआ। वक्ता थे राष्ट्रीय संग्रहालय के प्रख्यात् विद्वान
डॉ0 'प्रियतोष बैनर्जी। पिछले दिनों इसी विषय ' श्रीकृष्ण और भारतीय कला' पर
उनका एक और विशद् ग्रन्थ भी राष्ट्रीय संग्रहालय के प्रकाशन दिभाग द्वारा
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