जैन जगती | Jain Jagti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
275
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about दौलतसिंह लोढ़ा 'अरविंद' - Daulat Singh Lodha 'Arvind'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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पुस्तक की मूल भावना है कि जेनों में बढ़ता हुआ भेदभाव
नष्ट हो । बेशक प्रथग्भाव हास का श्रौरसम या समन्वय भाव
विकास का द्योतक है । अनेकान्त यदि कुछ है तो एकता का
प्रतिपांदन है । एकांत वृत्ति अनेक्य बड़ांती है | यदि जनों में फूट
दे तो यह मूठ है कि वे अनेकान्तवादी हैं। अनेकान्त जिसको
नीति हयो व वगे कट फँट नहीं, सकता | अनेकान्त अहिंसा का
बोद्धिक पर्याय है। द्वतवृत्ति दिगंबर और श्वेताम्बर के रूप में
जन अखण्डता के दो भाग करक ही नहीं रुछझ सकती | षढ़ तो
समाज-शरीर के खण्ड-खण्ड करेगी। वह हिंसा की, एकान्त की,
वृत्ति ही तो है। सब इतिहास में सदा विनाःश की यही प्रक्रिया
रही है । अपने बीच का अ्रभेद जब भूल जाय और भेद खाने
लग चण तब सम जाना चादिए कि मृत्यु का निमंत्रण मिल
गया टै ।
में नहीं जानता कि जन आपस में मिलेंगे। यह जानता
हूँ कि नहीं मिलेंगे तो मरेंगे । यह पुस्तक उनमें मेल चाहती है ।
श्रतः पढ़ी जायगी तो उन्हें सजीव समाज के रूप में, मरने से
बचने में मदद देगी | जरूरी यह कि जसे अपने वर्गं के भीतर
ससे इतर वगं के प्रति मेत्त की ही प्ररणा उससे श्राप्त की जाय ।
में लेखक के परिश्रम और सदूभावना के लिये उनका
अभिनंदन करता हूँ ।
द्रियागंज दिल्ली जैने न्द्रकुमार
| जैनेन्द्रकुमार
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