पंचतंत्र | Panchtantra

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Panchtantra by श्री वासुदेवशरण अग्रवाल - Shri Vasudevsharan Agarwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मित्र-सेद लेन-देन का व्यापार, जवाहरात का व्यापार, परिचित ग्राहक के हाथ माल बेंचने का काम, झूठे दाम पर माल वेचना , खोटी तौछ़ृ-माप रखना तथा देसावर से माल मंगाना । “सलौदों में सुगंधित दव्य ही असल सौदा है, जो एक में खरीदने पर सौ में विकता है । फिर सोने इत्यादि के व्यापार से वया लाभ ! घर में गिरवी रकम देखकर सेठजी अपने कुल-देवता की प्रार्थना करते हैं कि गिरों वरने वाले के मरने पर में आपकी मन्नत उतारूंगा ।” “जवाहरात का काम करने वाला जौहरी सुखी मन से सोचता हैं, पृथ्वी घन से भरी है , फिर मुझे, दूसरी वंस्तु से क्या काम ! “परिचित ग्राहक को आते देखकर उसे ठगने की व्योंत की घवराहट में व्यापारी पुत्र-जन्म का सुख मानता है । ओर भी . “भरे और खाली नपुए से वह नित्य परिचित जनों को ठगता हैं; माल की खोटी कीमत कहना यहीं किराटों यानी छुच्चे व्याः- पारियों का स्वभाव हैं 1 गौर भी “टूर देसावर में गए व्यापारियों को उनके उद्यम से नियमपूर्वक माल वेचने से दुगुना-तिगुना घन मिलता है।” इस प्रकार विचार करके मथुरा के उपयोगी माल लेकर अच्छी सायत में, गुरुअनों की आज्ञा लेकर तथा अच्छे रथ पर चढ़कर वह वाहर निकल । अपने घर में ही पैदा हुए माल ढोनेवालें संजीवक और नन्दक नाम के शुभ लक्षण वाले दो वैलों को उसने अपने रथ में जोत दिया था । इन दोनों में संजीवक नाम के बैल का पैर यमुना के किनारे उतरते हुए कीचड में फंसकर टूट गया, और जोत टूट जाने पर वह जमीन पर चैठ गया । उसकी यह अवस्था देखकर वर्वमान को वड़ा दुःख हुआ । स्नेह से द्रवित होकर वह उसके लिए तीन दिनों तक अपनी यात्रा रोके रहा ॥-




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