मोक्ष मार्ग - प्रकाशक | Moksha Marg- Prakashak

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Moksha Marg- Prakashak by टोडरमल - Todarmal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना (१३) ~~~ ~~~ ~~~ সপ ~ˆ ˆ ~~~ ~~~ और पांच सात ग्रस्थोकी टीका बतायवेका उपाय है । सो आयु की ' श्रधिकता हुए बनेगी। श्रर घवल महाधवलादि ग्रन्थोके खोलवाका उपाय किया वा उहाँ दक्षिण देससू पाँच सात और ग्रन्थ ताडपत्रां विषे कर्णाटी लिपि मैं लिख्या इहाँ पधारे है। याकू मछजी बाचे है, वाका' यथार्थ व्याख्यान करें है वा कर्णाटी लिपि मैं लिखि ले है। इत्यादि त्याय व्याकरण गणित छन्द अ्॒लंकारका याके ज्ञान पाइए है। ऐसे पुरुष महत बुद्धिका घारक ই कालविषे होना दुर्लभ है ताते वासू' मिले सर्व सन्देह दूरि होइ हैं ।' इससे पडितजी की प्रतिभा और विद्वत्ताका अनुमान सहज ही किया जा सकता है। कर्नाटकी लिपिसे लिखना,श्रर्थ करना उस भाषा ' के परिज्ञानके बिना नही हो सकता । भाप केवल हिन्दी गद्य भाषाके ही लेखक नही थे, किन्तु आपमें पद्य रचना करनेकी क्षमता थी श्र हिन्दी भाषाके साथ सस्क्ृत , भाषासे भी पद्य रचना प्रच्छी तरहसे कर सकते थे । गेोम्मटसार ग्रन्थी पजा उन्होने संस्कृतके पद्मयोमे ही लिखी है जो मुद्रित हो चुकी है थ्रौर देहलीके धर्मपुराके नये मन्दिरके शास्त्रभडारमे मौजूद है 1 इसके सिवाय सहष्टि प्रधिकारका भ्रादि अन्त मंगल भी सस्क्ृत इलोकोम दिया हुआ है और वह इस प्रकार है-- संच्ष्टेसेव्धिसारस्य दपणासारसीयुपः प्रकाशिनः पदं स्तोमि नेमिन्दोर्माधवप्रमोः ॥ यह पद्च दयर्थक है । प्रथम श्रर्थमे क्षषणासा रके साथ लब्धिसार की संहष्िको प्रकाश करने वाले माधवचन्द्रके गुरु आचाये नेमिचन्द्र संद्धान्तिकके चरणोकी स्तुतिकी गई है श्रौर दूसरे अ्र्थमे करण लब्धि के. परिणामरूप कर्मोकी क्षपराको प्राप्त और समी चीन दष्टिके प्रकाशक नारायराके गुरु नेमिनाथ भगवानुके चरणोकी स्तुतिका उपक्रम किया




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