चन्द्रकांत (भाग- २) | Chandrakant Part -2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्वितीय भाग ततीयप्रवाह- अच्युतपदारोहण प्रवेशिका वेदस्याध्ययनं ते परिचित शार्त्र पुराणं ल सवे उ्यथमिदं पदं न कमलाकान्तस्य चेत्कौ तितम्‌ । শা অন্ন विरवितस्सेको5म्भसा भूयला . सर्व निष्फलमालचालवल्ये क्षिप्त न बीज यदि ॥ - अथ-क्यारी खोदकर चारोंतरफसे एकसी मेंडे (बंधान) बनाकर बहु- तसा जक भरा जाय, किन्तु उसमं बीज न बोया जाय तो सब व्यथ जाता है, इसी प्रकार वेदोका अध्ययन किया हो, शाखोंको जानता हो ओर पुरा- णको सुना हयो, किन्तु यदि कमलाकान्त लक्ष्मीपति परमेश्वरके चरणकम- लोका गुणगान न क्या दहो तो यहं सव वेदाध्ययन नादिका परिश्रम व्यर्थदही जातादहै. „+` = अद्भत बडकद्शेन , []শ্রিকাজিভাহ ভিত” दिन कोई चार घड़ी चढ़ा था. बनमें पशु पक्षी अपने अपने काममें ध्न्डबकग्ड- रग गये थे, आमकी डालियोंपर छटकेहुए पके फरलोंका स्वाद चखनेके लिए तोते ओर कोयछ मधुर शब्द करते- हुए जहां तहां .डड़बैठ रदे थे. सुन्दर और दूरतक फेह्टे हुए. सरोवरके स्वण जैसे দিম जलमें विचित्र ओर सुगंधवारे कमलके फूछ खिल रहे थे. विविध भांतिक




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