परमार्थ चरित्र निर्माण | Parmarth Charitra Nirman

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Parmarth Charitr Nirmana  by स्वामी शुकदेवानंद - SWAMI SHUK DEVANAND

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सदव्यवहार से चरित्र-निर्माण ज्यवहार भ जिससे जिनका जितना अधिक खम्बन्ध होवा है उसे उखका उतना ही निभाना आवश्यक ६ । छन्तु इन खव सम्बन्धो की चपेक्ता { भगवन्मागे के पथिकों की मित्रता वढ़कर है। उसकी अनेक युक्तियाँ बतायो गयी हैँ। इसके खिंवा जो ऐसे लोग ई, जिनके साय गहरी प्रीति तो नहीं है, किन्तु सामान्यता एक सात्विक घरमे सम्बन्ध है, उनसे मेल मिलाप रखने की मी कुछ युक्तियाँ हैं । उनका वरेन नीचे क्रिया जवा हैः- १--जो पदार्थ अपने को अभीष्ट न द्वो उसकी प्राप्ति दूसरे के लिये भी न चाहें । मद्दापुरुष ने कहा है कि सव जीवों का सम्वन्ध एक शरीर के अंगों की तरह दे । यदि एक अंग को कष्ट पहुँचता दे तो सारा शरीर दी दुःख पाता है। इसी प्रकार उचित हैं कि किसी भी जीव के लिये दुःख का संकल्प न करे। | २--ऊमं और वचन द्वारा भी किसी को ढुःख न दे। किसी मद्दापुरुष ने भी कहा है कि जिस पुरुष की जिहा और हार्थो से किसी को दुःख न्दी पहुँचता वही घर्मात्मा दै । धत्तः निहा ओर कमे को ऐसी मर्यादा में रक्खें कि किसी को किसी भी प्रकार का कष्ट न हो । ३--अमिमान वश अपने को किसी से वड़ा न * सममें, क्योंकि अभिमानी पुरुष भगवान से विमुख होता है | इस विषय में महापुरुष को आकाशवाणी हुई थी कि दीनता और नम्नता को अंगीकार करो तथा अभिमानी सम बनो । अतः उचित यदी दै कि किसी को नीच न सममे । सम्भव है जिसको तुम नीच समते हो वह कोई सन्त द्वी हो और तुम डसे पद्दचानते न हो, क्योंकि बहुत सन्त ऐसे गुप्तरूप से रहते है. कि भगवान के सिवा और कोई उन्हें. पचान नदीं सकता 1 | ₹ ४-यदि तुम्दारे झागे कोई किसी की निन्वा करे तो तुम उसे घुनो मत । विश्वास तो इसी पुरुष का करना चाहिये जो सत्यनिष्ठ दो । निन्‍्दक तो कभी सत्यनिष्ठ छोता ही नहीं | एक सनन्‍्धच का कथन है कि पिशुन(चुगलखोर)ओर निन्दक अवश्य नरक- गामी दोते | इसके सिवा यद्‌ भी निश्चय जानों कि जो विना कारण दी तुम्हें दूसरों के दोष सुनाता है वह तुम्हारे दोप भी दूसरों को अवश्य सुनावेगा । ४--सव को पहले ही प्रथाम करो, किसी के भी साथ विरोध न रक्खो ओर न क्रोधषश किसी से मौन गाँठ कर ही वेठ जाओ। यदि कभी किसी से कोई अवज्ञा भी दो जावे वो क्षमा ही करदो | ६--सवके साथ यथाशक्ति सद्भाव और उदारता का ही वर्ताव करो | किसी की अच्छाई यथा बुराई की ओर मत देर | हो सकता है कोई पुरुष तुम से उपकार पाने का अधिकारी न हो, किन्तु दै तो सवका उपकार करने का धिकार है ही, झतः तुम वो उपकार द्वी फरो। धर्म को मर्यादा तो অহী है, कि सभी पर दया करें। ७--जो अपने से वड़। दो उसका वड़प्पन रक्‍्खो ओर जो छोटा हो उसपर दया करो। इसी पर मद्दापुरुष ने कहा है कि जो दूसरों का बड्प्पन रखता है उसका वड़प्पन भगवान दूसरों से रखते हैं 1 ८--सव से प्रसन्न मुख से मिलो और वचन भी मीठा दी बोलो । ६--जिसे कोई वचन दो उसका अवश्य पालन .करो | इख विषय भं सन्तो का कथन है कि यदि . कोई पुरुष श्रत और भजन भे सावधान भी हो, , “किन्तु . उसमें सिथ्या-भाषण, वचन का . निर्वाहं




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