बैंकिंग के सिद्धांत और उनका प्रयोग | Banking Ke Siddhant Or Unka Prayog

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Banking Ke Siddhant Or Unka Prayog by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अंग्रजी बेकिंग का इतिहास और उसकी उन्नति १३ परिवतन के समय इस आशय का एक विधान वनाया किं जब तक उक्त नेक आफ ईंगतैरुड काम करता रहे, इस वेक के अतिरिक्तं कोई भी एसा बेक जिसमे छः से अधिक व्यक्ति सदस्य हो अपने विनिमय के बिल्ों और प्रण-पत्रों को इंगलैण्ड मे छः महीने से पदिले मांगने पर द्रव्य देने की शर्त पर न चालू कर सके | इसका परिणाम यह हुआ कि लन्दन मे और उसके समीपवर्ती स्थानों मे ([स समय वेक आफ इंगलैण्ड का आफिस केवल लन्दन में ही था ) नोटों के चल्लाने का एक मात्र अधिकार विधानतः नही तो क्रियात्मक रूप से ही केवल बेक आफ इगलैण्ड दी के हाथ मे रह गया । यह सत्य है कि छः से कम व्यक्तियों केने हुये वेक लन्दन मे मी अपने नोट चला सकते थे ! किन्तु वेक आफ इंगकैण्ड के नोटों के राज्य द्वारा सी स्वीकृत हो जाने के कारण वे सर्रफ महाजनों के नोटों की अपेक्षा कही अधिक चालू थे । हाँ, लन्दन के वाहर अवश्य उनके नोट चलते थे। वेंक आफ इंगणैण्ड के नोट सन्‌ १८३३ मं विधानतः भ्राह्म ( 1,089! 79067 ) भी वना दिये गये । अतः, यह स्पष्ट है कि सराफ महाजनों ने पहिले और अन्य सम्मिलित पूजी बाले ब्रेकों ने सन्‌ १८३३ के वाद जव वे लन्द्न से ६५ मील के व्यास कत्रमे नोटों को न चला सकने के प्रतिबन्ध के साथ वहाँ पर स्थापित हुए, नोटों के स्थान पर चेकों का प्रयोग बढ़ाने के निरन्तर प्रयत्न किये। आवागमन के साधनों के उन्नत दशा मे न होने के कारण बेंक आफ इंगलैण्ड ने अपना दफ्तर सन्‌ १८२४ तक केवल लन्दन मे ही रक्ला । अतः, तव तक उसके नोट लन्दन से वाहर इतने परिमाण से नही पहुँच सके कि वहाँ के महाजनों के नोट बहां पर न चल सके | अतः, वहां के महाजनों ने वहां पर चेकों के प्रयोग के लिये कोई प्रयत्न नहीं किया । परतिवन्ध का संशोधन सन्‌ १८२६ के विधान मे नोट चलाने वाले सम्मिलित पंजी के वेकं की संस्थापना की इस शतं पर आज्ञा दे दी किमे लन्दन में और वहाँ से ६४ मील के व्यास-क्षेत्र के अन्दर कहीं भी न तो अपने आफिस खोलें और न नोट चलाबें। इसके फलस्वरूप देश लन्दन क बाहर महत्वेशाली वैक खुल गये । सन्‌ १८१३ में इन्हें लन्दन में भी इस शर्त पर अपनी शाखाय॑ खोलने की आज्ञा दे दी गई कि




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