श्रमण सूक्त | Sraman Sukt

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Sraman Sukt by श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिः “छ घिरत्थु ते जसोकामी जो त जीवियकारणा | वन्त इच्छसि आवेड सेय ते मरण भवे।।] (दस २ ७) है यश कामिन्‌ | घिक्‍कार है तुझे ! जो तू क्षणभगुर जीवन के लिए बनी हुई वस्तु को पाने की इच्छा करता हे। इससे तो तेरा मरना श्रेय है। ০০




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