दिनचर्या | Dincharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ अध्याय १ ग्रातःसन्ध्यामें रातके पापोंको नाश करनेके लिये भगवानकी सूर्यमृतिके प्रति प्रार्थना की गयी है, एवं उन्दने हम सके मद्गल- २-हे जर ! क्योकि লীন सुखदायक हो, इसीलिये तुम हम सबको अन्नभोग एवं महत्‌ और रमणीय ज्ञान-छाभके अधिकारी बनाओ। ३-पुत्र-हितैपिणी जननी जिस प्रकार अपना खन्‍्य-रस पिछाकर घुत्रका कल्याण करती है, उसी प्रकार हे जक ! तुमछोग भी दकारे इम सबको अपने कल्याणतम रस-पानका अधिकारी बनाओ। ४-है धनशालित्‌ निर्मेक-स्वभाव सूर्य ! मैंने असमर्थ होकर ही विहित कर्मके प्रतिकूच आचरण किया है, भर्थाद्‌ मैं विहित.कर्म नहीं कर सका हूँ । है शोभन धनशालिन ! मुके सुखो करो एवं सुझपर दया करो। है सूर्य | हमलोगोंने मनुष्य होकर देवताओंके प्रति जो कुछ अपकार किया, एवं अश्ान-वश तुम्हारी उपासनामें मन नहीं छूगाया है, हे देव ! उस अपराधके छिये हम सबका विनाश न कर देना । मनुष्य अहड्ारमें मत्तवारा ्टोकर अयुचित इन्द्रिय-भोगद्वारा जो इन्द्रियॉका तेज क्षय करता है, एवं अज्ञानवश शिश्नोद्र-परायण होकर भगवानूकी থালা से ट मोद केता है, हे देव ! तुम यदि इन सब अपराधोंको क्षमा न करोगे तो महाविनाशसे बचनेका और कोई उपाय नहीं है । ২-ই ভূর, मन्यु एवं मन्धुपति ! भविवेक-वश सम्पूणं दन्द्ियोके दैन्य, ताप, कोष एवं बहङ्कारकृत पापो मेरी रा करो, जिससे मे देन्य, क्रोध अथवा अहङ्कारवका नहीं करने योग्य कार्य॑ न कर बैहूँ । मैंने रातको मनसे, चाक्यसे, दोनों हाथोसे, दोनों पैरोंसे, पेट अथवा छिक्लद्वारा जो सब पाप किये हैं, राज्ि-देवता उन्हें नष्ट करें | सुझमें जो कुछ भी पाप हैं, उन पापौको और उन पापौंके कर्ता अपनेको (लिद्न-शरीरको) मैंने जगत-कारणरूप सूर्य-ज्योतिर्मे श्थात्‌ हृदय-पञ्ममें स्थित प्रकाशस्वरूप एवं नित्य चैतन्यस्वरूप परमात्मा होम कर दिया। देह, सन और




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