दिनचर्या | Dincharya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
242
श्रेणी :
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No Information available about भूपेन्द्रनाथ सान्याल - Bhupendranath Saanyal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५ अध्याय १
ग्रातःसन्ध्यामें रातके पापोंको नाश करनेके लिये भगवानकी
सूर्यमृतिके प्रति प्रार्थना की गयी है, एवं उन्दने हम सके मद्गल-
२-हे जर ! क्योकि লীন सुखदायक हो, इसीलिये तुम हम
सबको अन्नभोग एवं महत् और रमणीय ज्ञान-छाभके अधिकारी बनाओ।
३-पुत्र-हितैपिणी जननी जिस प्रकार अपना खन््य-रस पिछाकर
घुत्रका कल्याण करती है, उसी प्रकार हे जक ! तुमछोग भी
दकारे इम सबको अपने कल्याणतम रस-पानका अधिकारी बनाओ।
४-है धनशालित् निर्मेक-स्वभाव सूर्य ! मैंने असमर्थ होकर ही
विहित कर्मके प्रतिकूच आचरण किया है, भर्थाद् मैं विहित.कर्म नहीं कर
सका हूँ । है शोभन धनशालिन ! मुके सुखो करो एवं सुझपर दया करो।
है सूर्य | हमलोगोंने मनुष्य होकर देवताओंके प्रति जो कुछ अपकार
किया, एवं अश्ान-वश तुम्हारी उपासनामें मन नहीं छूगाया है, हे देव !
उस अपराधके छिये हम सबका विनाश न कर देना । मनुष्य अहड्ारमें
मत्तवारा ्टोकर अयुचित इन्द्रिय-भोगद्वारा जो इन्द्रियॉका तेज क्षय
करता है, एवं अज्ञानवश शिश्नोद्र-परायण होकर भगवानूकी থালা
से ट मोद केता है, हे देव ! तुम यदि इन सब अपराधोंको क्षमा न
करोगे तो महाविनाशसे बचनेका और कोई उपाय नहीं है ।
২-ই ভূর, मन्यु एवं मन्धुपति ! भविवेक-वश सम्पूणं दन्द्ियोके
दैन्य, ताप, कोष एवं बहङ्कारकृत पापो मेरी रा करो, जिससे मे देन्य,
क्रोध अथवा अहङ्कारवका नहीं करने योग्य कार्य॑ न कर बैहूँ । मैंने रातको
मनसे, चाक्यसे, दोनों हाथोसे, दोनों पैरोंसे, पेट अथवा छिक्लद्वारा जो
सब पाप किये हैं, राज्ि-देवता उन्हें नष्ट करें | सुझमें जो कुछ भी पाप
हैं, उन पापौको और उन पापौंके कर्ता अपनेको (लिद्न-शरीरको) मैंने
जगत-कारणरूप सूर्य-ज्योतिर्मे श्थात् हृदय-पञ्ममें स्थित प्रकाशस्वरूप
एवं नित्य चैतन्यस्वरूप परमात्मा होम कर दिया। देह, सन और
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