तुलसीदास एक अध्ययन | Tulsidas Ek Adhyyan

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Tulsidas Ek Adhyyan by रामरतन भटनागर - Ramratan Bhatnagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवनी ओर व्यक्तित्व ७ ४५--तुलसीदास विधवा को आशीष बचन देते हैं, अंत में उन्हें उसके गेत पति का जीवनदान देना पड़ता है । ( ५१४ ) ६--छुलसी के चमत्कारों की बात सुनकर अकवर उन्हें बुलावा है, उनके करासात दिखाने से इंकार करने पर उन्हें बंदी कर लेता है । कवि हजुमान से प्राथना करता है। बंदर प्रगट होकर उत्पात करने लगते हैं । यह्‌ उत्पात तब बंद होता है जब वादशाह क्लिला छोड़ते पर হাজী হী जाता है और तुलसी को मुक्त कर देता है। ( ५१४, ४१६, ४१७ ) «--तुलसी दिल्‍ली से लौटकर बृन्द्रावन जाते हैं | वहाँ नाभादास से भेट होती है ( ५१७ ) | बृन्द्रावन में वह मदनगोपाल की मूर्ति से प्रार्थना करके उसे राममूर्ति मे वदल देते है । उपयुक्त कथाओं में आर वातो की अन्य संतो-मक्तो के सम्बन्ध मे लिखी गई कथास से ' बहुत कु साम्य हे । प्रियादास की तुलसी के स्री-प्रेम रौर तिरस्काग हारा भगवद्‌-विपयक-ज्ञानप्राप्रि की कथा वातौ मे यदुनाथदास से सन्बन्धित दहै (प्र ८१) ओर प्रियादास की हयारेवाल्ली कथा- वातो की लाहौर कं पंडित की वाती ( प्र० ३१६ ) मे मिलती घट रामायण मे तुलसीदास को कुलीन कान्यकुब्ज त्राढाण कहा गया है। थे यमुना किनारे राजापुर ग्राम में उत्पन्न हुए । तुलसीदास ने इस न्थ मे तुलसी-संचन्धी % तिथियाँ दी दै--जन्म-तिथि सं° १५०६ माद्रपदः शुक्ला ११ मंगलवार; चानोदय तिथि सं> १६१४ श्रावण शुक्ला ६; काशी-पगमन-तिथि १६१५ संवत्‌ चेच १२ मंगलवार रौर देहांत-तिथि सं ६८० श्रावण शुक्ल ७। ये जन्म- मरण तिथियाँ लगभग वदी है जो अधिकांश विद्वानों को मान्य हैँ । एक दूसरे प्रकार की सामग्री सोरों की सामग्री का समर्थन करती है। पहले हम “२५२ बेष्ण॒वों की লালা” জী ভী लेंगे। इस प्रंथ में हम तुलसी के सम्बन्ध में इतनी सूचनाएं पाते ই :-_




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