माधव जी सिंधिया | Madhav Ji Sindhiya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
582
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साधव जौ ्तिपिया ३
परु गहं निपेय उसकी झन्दहं प्टि को भपने वाल-सहजण सौन्दय मोह
से निवृ्त नहीं कर सकता या। शिहाबुद्दीन ने पिता की अनुपस्थिति में
प्र की प्रोर से मन को खीचकर अपने शरीर को सजाने संवारते में
कंगाया । खीत्व को अपने युरुदत्व वर प्रारोदित किया ।
उघर गाजोउद्देत मराठों की सहायता से श्रयने भाई भवीजों का
मृकादिता करने के लिये दक्षिण मे व्यस्त या।
उन्होंने युद्ध की नौवत हो नहीं भ्राने दो। भादर सक्तार किया
धोर दावतो ज्याफ़तों का पहाड खड़ा कर दिया । लड़ाई किस वात के
-लिए ? रियाप्तत यों ही हाजिर है। मराठो की सहायता ली दी कमो जाय?
एक दावत में गाजीउद्दीन को विंप दे दिया गया भौर वह हैदराबाद
की रियासत तथा इस संसार से सदा के लिग्रे बिदा ले गया ।
* शिह्दाबुद्दीन भे दो मराठों को भूत्त सकृता था झोर ने भराठे
“हैदराबाद को । ग्राजीउद्दीत के समाप्त होने के उपरान्त उसके भाई
अतीजो ओँ परस्पर चन्त पड़ी। दो बड़े बड़े दल बने ! एक दल में
फ्रासीसियों का सहारा पकड़ा । फ्रासोसी सेवानायक वुसी भूव सीमे
सिखाये तिलंगे घोर यूरोपियन सैनिकों को लेकर उस दल में धामित
हो गया । उसके पास बढ़िया फ्रासीसी तोएँ भो थी। दूसरे दल ने
मराठों का सहारा एकड़ा ।
मराठो को हर हालत में युद्ध करना था। उतके तित्म जीवन के
लिये निजाम का राज्य--हैदराबाद--एक कठोर कांदा था। इसको
तोड़े या भोड़े बिना उनका काम हो नहीं चत सकृता था। पुतंगाली,
फांसीसी भौर भागे भाने वाले श्रज्धरेज भी 'उनकों स्पष्ट भ्रपते शत्रु
दिखलाई पड़ रहे थे । इसलिये इस युद्ध के लिये महाराष्ट्र में बड़ी उमंग
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एस्न्तु जिस््तों का एक समूह भौर घा1 हैदराबाद रियासत जिनं
रिमासतों - योसरुंडा, दीजापुर, दीदर इत्यादि--के खण्डो पर चटी
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