नरेंद्र मोहिनी | Narendra Mohinii

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Narendra Mohinii by बाबु देवकीनंदन खत्री - Babu Devkinandan Khtri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मी दस कर इस किश्ती के साथ बांघ ला तब तुम सवार हे। क्यों - कि उस किश्ती को भी मैं अपने साथ लेती चलूंगी ॥ । दूसरी किश्ती के इसके साथ चांघि कर हे खलना देफायदे है और हमारी उसके साथ बैंघने से उतनी तेज न चल सकेगी जितनी अकेली ॥ नहीं जा मैं कहती हूं उसे करा इसका सबब तुम्हें मालूम नहीं यस अब बहुत देर करने में हर्ज हागा सब्दी उस किश्वी केश सी इसके साथ बांधकर तुम सवार हे ज्ञाओ ॥ ज्रोज्वान ने यह साचकर कि शायद इसमें काई मेद है उस दूसरों किश्ती के किनारे से खाल अपनी किश्ती के साथ यांघा और खुद सबार है।कर किश्ती किनारे से हटा दिया और डॉडि सेकर खेनें छंगा ॥ _ औरत । अब मेरा जी ठिकाने हुआ जान बचने की उम्मेद हुई यह सब आप ही की चदौछत है अब आप इस आकर वैटिये मैं किश्ती खेकर से चलती हू ॥ वैजवान+ | चाह मैं बेट्ठं और तुम किश्ती खेंओ यह भी खुद कही बस तुम देने चुपचाप बैठी रहे देखा मैं कितनी तेज इसे ले चढता हूं । तुम खायें के हे अभी तक हैश भी डिकाने नहीं हुए हैंगि हों यह ते बताओ कि असी तक ते मुझको तुम तुम कहकर पूकारती रहीं म्रगर जब से किम्ती पर सवार हुई है। कई वफे गुद्े आप .कहके सुमन पुकारा इसका




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