ताप और तप | Taap Aur Tap
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
नाना लालजी - Nana Lalji
No Information available about नाना लालजी - Nana Lalji
शांति चन्द्र मेहता - Shanti Chandra Mehta
No Information available about शांति चन्द्र मेहता - Shanti Chandra Mehta
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ताप झौर : तप-७
भौतिक पदार्थों को ही सुखं का मूल मानकर इन्हीं के पीछे
लालसा की दौड़ लगा रहा है-- यही इसकी अशुद्धता है
तथा इस शअशुद्ध ईश्वर को जो न्यूनाधिक रूप में भाप॑ व
हम सब हैं, प्रसन्न करना है तो इसकी अशुद्धता को मिटा-
कर इसे पवित्र वनाना पड़ंगा । यह् अशुद्ध .ईडवर जव प्रसन्न
हो जायगा, सच्चे आनन्द की अनुभूति जगा लेगा .तंव अपने
पराक्रम से, अपनी साधना से ओर ज्ञान-दङन व चारित्र
मय अपनी श्रन्तचंतना से वहं भ्रपने शुद्ध ईश्वरत्व को प्राप्त
कर लेगा और तब वह भी ऋषभ भगवान् की तुरह् शुद्ध
ईश्वर बन जायगा |
जब किसी स्त्री का पति उससे अप्रसन्न होता है तो
श्राप जानते हैं कि उस स्त्री के मन का. हाल क्या होता: है?
उसका मन ताप-तप्त होता है क्योंकि वह. अपने पति की
अप्रसन्नता में अपने जीवन को निरथेक मानती है तथा मिर-
क~जीवन भारपूणं ही महसूस होता है! यह. ताप उसके
लिये वडा कठिन होता है ओर प्रत्येक क्षण. .वह् अभिलाषा
करती है कि उसका ताप मिट जाय तथा उसे उसके पति
का आश्रय मिल जाय'। यह् मनोदशा तो हुई एक. पतिव्रता
पत्नी की, जिसमे अपने स्वामी के प्रति अट्ट निष्ठारहैकिर
स्वामो उसमे अप्रसन्न हैं। उसके सामने स्वामी. को रिभाने
का कत्तंव्य स्पष्ट होता है कि वह अयत्नरत बने । .
स्त्री की एक दूसरी भी अवस्था होती है और वह
यह कि वह कभी-कभो अपना पतिक्नत-धर्म भी भूल जाती
है तथा राह चलते किसी भी पुरुष से अपना संम्बन्ध जोड़
लेने को बेभान अवस्था के. वशीभूत हो जाती है | प्रथम क्षण में
उसे इसके ताप का बोध -भजे ही न हो किन्तु जब उसे इसका
User Reviews
No Reviews | Add Yours...