समता : दर्शन और व्यवहार | Samta: Darshan Aur Vyavhar

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Samta: Darshan Aur Vyavhar by नानालाल जी महाराज - Nanalal Ji Maharajशांति चन्द्र मेहता - Shanti Chandra Mehta

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नानालाल जी महाराज - Nanalal Ji Maharaj

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शांति चन्द्र मेहता - Shanti Chandra Mehta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषयाचुक्रम प्र्ष्ठ ७: परमात्म-दलन के समतापू्ण लक्ष्य तक 8७ यह कायरता कंसे मिटे ? पर कहाँ-कहाँ कच्चे हैं और क्यों ? तीसरे के बाद यह चौथा सोपान समता इन्सान और भगवान्‌ को यह कमंण्यता का मार्ग है गुर्णों के स्थानों को पहिचानें और आगे बढें जितनी विषमता कटे, उतने गुण बढ परम त्म स्वरूप को दार्शनिक भूमिका त्याग : जीवन विकास का मूछ परम पद की ओर गति “'अप्पा सो परमप्पा” समता का सर्वोच्च रूप साध्य निरन्तर सम्मुख रहे । ८! समता :. व्यवहार के थपेड़ों में ११३ व्यवहार के प्रबल थपेडे स्वहित की आरभिक सज्ञा स्वहिंत के सही मोड की बाघाएं समता का दुर्दान्त शत्रु-स्वार्थ नियत्रण की दुघारी चाहिये सामाजिक नियत्रण की प्राथमिकता सामाजिक नियत्रण का साध्य हो ? आत्म-निपत्रण की दिशा मे आत्म नियत्रण का व्यवहा रिक पहलू व्यवहार मे थपेडे आवष्यक हैं व्यवहार के थपेडों मे समता को कहानी




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