स्वप्न लोक | Swapan - Lok
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.72 MB
कुल पष्ठ :
161
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about वैद्य हरिमोहन शर्मा - Vaidya Harimohan Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मुक्त क्रीडाएँ करती है । मनुष्य की इच्छा से स्वतन्त्र क्रिया करने की दक्ति के अस्तित्व का पहला सच्चा प्रमाण भौतिक विज्ञान को सम्मोहन और योगनिद्रा मे प्राप्त हुआ है। यूनानी दार्शनिक अरस्तू का भी विश्वास था कि सर्वश्रेष्ठ मानव वही है जिस के सपनों के कार्य-कलाप दुसरे लोगों के जाग्रतावस्था के का्य-कलाप के समान होते है। योगनिद्रा में सुक्ष्म लोकों के दर्शन तीद एक भौतिक आवश्यकता है और योगनिद्रा आध्यात्मिक । प्राचीन काल के भारतीय न्रउषि जागृति और सुषुस्ति दोनो स्थितियों का पूरी तरह रस लेकर एक।न्त वन-बविजनों में प्रकृति के सुक्ष्म लोकों के प्रत्यक्ष दर्शन करते थे । पश्चिम की युवा पोढी आज एल० एस० डी ० तथा अन्य मादक दवाओं के सेवन से क़त्रिम नीद में सोकर सुक्षम लोकों भर अलौकिक दुश्यो का अवलोकन करती है। आज भी तिब्बत के लामाओं का दावा है कि वे योगनिद्रा के सामर्थ्य से भूत और भविष्य को जान सकते तथा एक दारीर से दूसरे दारीर में पहुँच सकते है । यूँ तो ऐसे अनेक वैचित्रयपूर्ण प्रसंग वर्षो से सामने आये है पर उन के इस दावे के प्रत्यक्ष प्रमाण है--तीन आधुनिक ग्रन्थ जो ऐसे व्यक्तियों द्वारा लिखे गये है जिन का योगनिद्रा अथवा किसी भी अगोचर झाक्ति से कभी कोई सम्बन्ध नहीं रहा । पर जिन के प्रामाणिक वर्णन उन के द्वारा अचेतनावस्था में अगोचर लोकों के प्रत्यक्ष दर्दान की साक्षी देते है । ये वर्णन निरे काल्पनिक या आनुमानिक नही है वरन् उतने ही ठोस सत्य है जितना पैरा-साइकालोजी परा-मनोविज्ञान की अलौकिक मानों जाने बाली उपलब्धियाँ जिन के बारे में विश्व भर में वैज्ञानिक प्रयोग हो रहें है । उपरोक्त ग्रस्थ है--टी० लोबसंग रम्पा कृत थर्ड आई सुप्र-अर ज़होर कृत मगोलिया की मरुभूमि को आध्यात्मिक यात्रा और चोन-स्थित डेनियल वारे नामक इटलीवासो कृत द मेकर श्रॉफ हैवनली टाइजर्स । आगे प्रस्तुत है--इन तीनो ग्रन्थों मे वर्णित अगोचर शक्तियों और सृष्टियों के प्रत्यक्ष सम्पक का संक्षिप्त विवरण जो इन तीनों लेखकों ने अचेतावस्था में योगत्तिद्रा में किया । थर्ड आई लेखक एक ऐसे अँगरेज थे जो कतई पढ़े-लिखे नहीं थे और नही उन्होंने कभो तिब्बत की यात्रा की थी । फिर भी उन्होंने तिब्बत के आध्यात्मिक जीवन का वर्णन जिस बारीकी से किया है वह सौ फ़ीसदी सच है । छेखक महोदय का कहना था कि वे वास्तव मे एक तिब्बतों लामा है और सुक्ष्म आत्मशक्ति द्वारा मात्र इस ग्रन्थ के प्रणयन के लिए उन्होंने अपना चोला त्याग कर एक अँगरेज् का चोला ग्रहण किया है भौर इस नये जीवन का अनुभव करने के बाद वे पुन छामा बन जायेंगे । यह प्रसंग आद्य शंकराचार्य की याद दिलाता है जिन के बारे मे कहा जाता है कि उन्होंने राजा अमरूक के दाव मे प्रवेश करके राजवों भोग भोगे । स्वप्नठोक ९ प्र
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