छहढाला सार्थ | Chhahadhala sarth
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
Pt. Ji was born in the Pallival caste in the Sasni village of Hathras near Aligarh in the year between 1855-56 Vikram samvat. His father’s name was Todarmal (he is different from the author of mokshmargprakashak, Shri Todarmal Ji)
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छुह्द गला--खाँथे। [१३]
ही-पर स्थावर अवस्था को धारण करता है जोकि व्य-
चहांर राशि' कहलाती है । इसका मतलब यह है कि
अगर निभिक्त भिलजाय तो किरि उस जीव का सुधार
उन्नति )आखसानी से हो सक्ता है।
শালাধ-
व्यवहार का र्थं है सेद्-सो ज्ञिस पर्याय में भेद दोने
सगणाय बह ब्यवद्दार-पर्याय या व्यवदार-राशि फहलाती है।
ससे जबतक इस जीव थी निशोद् पर्याय रहता है লক্ষ
डलफी ओवात्मा में सिवाय निगोद पफेन्द्रियत्थ के और बोई
इसरा भेद द्यी न्धं हेता । प्रौर जघ स्थावर पर्याय में घट्ट
था जाता है सथ पथ्थी पकट्री, जलं पकन्द्री ह्त्यादि भेद
धोने लगता हुँ-इसीलिये उसको व्यवहार शशि सते है ४
इस अफार षह पकेनदरी निगोदिया जीव अनादि-अनन्तकाल
पन्न दरिगोद् पर्याव में दो दा[स करता छुपा जन्स-सरण फे
घोर दृश्ख उठांतर है, तंव फदी स्ोभाग्य स चह( काल सन्धि )
पाता है जिसमें उसका विक्लना दोता है । चस उसी
का नाम हैं काल-लब्धि, जिस कालम उल्ल कायं को सिद्धि
होता दे ।
प्रश्ल--स्थावर पर्याय प्रे छाद फ्नसी पर्याय दोती है ओर
उसका तरीका (त्राप्त ) क्या हैँ १ इसका उत्तर--
दलभ लहि ज्यों चिन्ता मणी
त्यों पर्याय लही त्रस-तणी॥
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