छहढाला सार्थ | Chhahadhala sarth

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Chhahadhala sarth by पं. दौलतराम जी - Pt. Daulatram Ji

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Pt. Ji was born in the Pallival caste in the Sasni village of Hathras near Aligarh in the year between 1855-56 Vikram samvat. His father’s name was Todarmal (he is different from the author of mokshmargprakashak, Shri Todarmal Ji)
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छुह्द गला--खाँथे। [१३] ही-पर स्थावर अवस्था को धारण करता है जोकि व्य- चहांर राशि' कहलाती है । इसका मतलब यह है कि अगर निभिक्त भिलजाय तो किरि उस जीव का सुधार उन्नति )आखसानी से हो सक्ता है। শালাধ- व्यवहार का र्थं है सेद्-सो ज्ञिस पर्याय में भेद दोने सगणाय बह ब्यवद्दार-पर्याय या व्यवदार-राशि फहलाती है। ससे जबतक इस जीव थी निशोद्‌ पर्याय रहता है লক্ষ डलफी ओवात्मा में सिवाय निगोद पफेन्द्रियत्थ के और बोई इसरा भेद द्यी न्धं हेता । प्रौर जघ स्थावर पर्याय में घट्ट था जाता है सथ पथ्थी पकट्री, जलं पकन्द्री ह्त्यादि भेद धोने लगता हुँ-इसीलिये उसको व्यवहार शशि सते है ४ इस अफार षह पकेनदरी निगोदिया जीव अनादि-अनन्तकाल पन्न दरिगोद्‌ पर्याव में दो दा[स करता छुपा जन्स-सरण फे घोर दृश्ख उठांतर है, तंव फदी स्ोभाग्य स चह( काल सन्धि ) पाता है जिसमें उसका विक्लना दोता है । चस उसी का नाम हैं काल-लब्धि, जिस कालम उल्ल कायं को सिद्धि होता दे । प्रश्ल--स्थावर पर्याय प्रे छाद फ्नसी पर्याय दोती है ओर उसका तरीका (त्राप्त ) क्या हैँ १ इसका उत्तर-- दलभ लहि ज्यों चिन्ता मणी त्यों पर्याय लही त्रस-तणी॥




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