सचित्र जैन कहानियां भाग 11 | Sachitr Jain Kahaniyan Bhag 11

Sachitr Jain Kahaniyan Bhag 11 by महेन्द्रकुमार जी प्रथम - Mahendrakumar Ji Pratham

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ङ निर्णय स्वतर सके :क । मैंने अपना निर्णय पाठकों पर थोपने का यत्न नहीं किया है; बहुत सारे स्थलों पर कथा-वस्तु में तनिक- सा परिवर्तन कर देने पर विशेष रोचकता भी हो सकती थी, किन्तु, प्राचीन कथाओं की मौलिकता को बनाये रखने के लिए ऐसा भी नहीं किया गया है । जन कथा-साहित्य जितना विस्तीर्णं है, उतना ही सरसभी है । आज तक वह आधुनिक भाषा में नहीं आया था, अतः वह अपरिचित ही रहा । मुझे यह अनुमान नहीं था कि पच्चीस भाग लिखे जाने के बाद भी उसकी थाह अज्ञात ही रहेगी। ऐसा लगता है, जन कथा-साहित्य के छोर को पाने में अनेक वर्षों की अनवरत तपस्या आवश्यक 8 | আমাল, লিনঙ্গিল, चूणि, भाष्य, रोका आदि में कयाओं का विपुल भण्दार है। रास साहित्य ने उसमें विशेषत: और अभिवद्धि की है। ज्य-ज्यों गहराई में पहुँचा जायेगा, त्यों-त्यों विशिष्ट प्राप्ति भी होती जायेगी तथा और गहराई में घुसते के लिए उत्साह भी वद्धिगत होता जायेगा। ममे प्रसन्नता है कि जन कहानियों का समाज के सभी वर्गों में विशेष समादर हुआ। कहना चाहिए, उसी कारण इस दिशा में निरन्तर लिखते रहते का उत्साह जगा | आरम्भ में योजना छोटी थी, पर, अब वह स्वतः काफा विस्तीर्ण हो चुकी है | पहली बार में दश भाग पाठकों के समल्ष प्रस्तुत हुए थे और अब दूसरी बार अगले पन्द्रह भाग प्रस्तुत हो रहे हैं। इसी क्रम से बढ़ते हुए शीघ्र ही सो भागों की अपनों मंजिल तक पहचाना है। भगवात श्री महावीर के २४ वें घताव्दी समारोह तक यदि यह कार्य सम्पन्न हो सका, तो विशेष आह्वाद का निमित्त होगा । अणब्रत अनुशास्ता आचाय॑ श्री तुलसी के वरद आशीर्वाद ने साहित्य के क्षेत्र में प्रवत्त किया और अणुक्नत परामर्शक मुनि श्री गनराज जी डी० लिट्‌० के मार्ग-दशन ने उसमें गतिशील किया।




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