भारती का सपूत | Bharti Ka Sapoot
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
153
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अपनी संस्क्ृति को अपनी सहिष्णुता के कारण एक माना था। भारतेन्दु ने
उसे पहचाना।
भारतेन्दु के समय में भारत जैसे एक नयी लड़ाई के लिसे तैयारी कर रहा
था । वे उस नये युद्ध के अगुआ थे | अपने युग के बंधनों के बावजूद वे कला
आर साहित्य का नाता सीधे जनजीवन से जोड़ना चाहते ये। उनके समय में
काव्य कला तो दरबारों की चीज थी। पर वे धनी होकर भी धन की सीमा
में ही बंधकर नहीं रह सके | यह उनकी सबसे बड़ी विशेषता है, जो बताती
है कि बड़ा कलाकार अपने वर्ग में बंध नहीं जाता, वरन् समग्र मानव का
प्रतिनिधित्व करता है श्रोर उतकी कला में, वह भले ही दुराव करना चाहे,
सचाई फूट कर निकल पढ़ती है ।
परन्तु क्या भारतेन्दु में कुछ कमियां नहीं थीं ? थीं। वह कमिमों उनके
युग का बधन थीं | वे कबीर की भॉति गरीब और नीच जाति के आदमी नहीं
थे | उनमें अतीत का मोह था। वह मोह उनमें अकेले में नहीं था| वह লী
भारतीय राष्ट्रीयता के विकास की टेड़ी ही नींव थी । जिससे ऊपर उठने वाली
इमारत भी टेढ़ी ही उठी | उधर मुस्लिम चेतना भी जाग रही थी। अंगरेज
हिंदुओं ओर मुसलमानों में फूट डाल रहे थे | सर सैयद अहमद खाँ को अंग-
रेज़ों मे खरीद ही लिया था और इस प्रकार फूठ बढ़ रही थी। मुसलमान
उदन्चव्ग भ्रभमी तक ईरान और अ्ररब से प्रेरणा ले रहा था , और हिंदू अपने
प्राचीनकाल से । यह प्रभाव भारतेन्दु मे भी भिल जाते है । परन्तु इसका श्रथ
यह नहीं है कि वे मुसलमानों के विरोधी थे । वे तो देश को समृद्ध देखना चाहते
थे । वे श्रंगरेजी राज को श्रच्छा समभते ये, स्वामिमक्ति मी दिखाते थे, पर
मन तो अपनी आजादी चाइता था और इसको उन्होंने अपने साहित्य में
प्रगट भी कर ही दिया है, इससे तो अस्वीकृति दिखलाई नहीं जा सकती ।
वे बहुकृत्य; बहुकरणीय थे | उनका पारिवारिक जीवन सुखी नहीं था ।
और इन्द्रौ में पढ़ा हुआ वह व्यक्ति जैसे उस समय के मारत का बह गौरव था,
जो अपने अ्रतीत को याद करके रोता था, नया जागरण चाइता था और
आने वाले प्रभात का अभिनंदन करना चाहता था |
देवकीनंदन खश्री ने श्रपनी चन््रकान्ता संतति के चौग्रीसिवे हिस्से के
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